वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल
वीपीआई का इतिहास
Under construction inconvenience is highly regrated.
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3 जनवरी 2020 को बरपेटा (असम) में पार्टी कैडर की ट्रेनिंग हुई. जिसमें 504 से अधिक लोग शामिल हुए। रंगापारा की ट्रेनिंग में 750 से अधिक लोग शामिल हुए। श्री विश्वात्मा का 52वां जन्म दिवस समारोह 16 फरवरी 2020 को रंगिया में मनाया गया। इस अवसर पर "नागरिकता पुनर्विचार रैली" का आयोजन किया गया। इस अवसर पर श्री विश्वात्मा की पुस्तक "लोकतंत्र की पुनर्खोज" का विमोचन सम्पन्न हुआ. इस रैली में लगभग 50 हजार लोग शामिल हुए। 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर असम के गोरेश्वर में एक जनसभा, आयोजित की गई जिसमें लगभग 2000 लोग शामिल हुए। अगले दिन 9 मार्च को उदालगुरी में एलईडी स्क्रीन के माध्यम से एक दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया, जिसमें लगभग 1000 लोग शामिल हुए। नागालैंड के दीमापुर में 10 मार्च से 13 मार्च तक चार दिवसीय कैडर ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किया गया, जिसमें 127 लोग शामिल हुए। श्री विश्वात्मके नीति निर्देशन में वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल को आगे बढ़ता हुआ देख सत्ताधारी दल ने साजिश करके श्री विश्वात्मा को नागालैंड में 13 मार्च को गिरफ्तार करने, श्री विश्वात्मा का अपहरण करने, फिरौती में पार्टी का सारा कोष खत्म करने और अंत में विश्वात्मा की हत्या करने की साजिश किया। श्री विश्वात्मा को गिरफ्तार करने के बाद पार्टी के असम कार्यकर्ताओं ने रेल रोको आंदोलन और जेल भरो आंदोलन शुरू करने की तैयारी शुरू किया। पार्टी कार्यकर्ता ऐसा कर पाएं, इसके पहले ही केंद्र सरकार ने पूरे देश की रेल रोकने का आदेश पारित कर दिया दिया। पूरा देश ठप्प हो गया। पूरे देश में सड़कों पर आवाजाही रोक दी गई। हवाई यातायात बंद कर दिया गया। लोग अपने अपने घरों में कैद हो गए। जो जहां गया था, वही फंस गया। श्री विश्वात्मा को प्रताड़ित करने के लिए 10 दिन तक अनावश्यक रूप से पुलिस रिमांड में रखा गया। 23 मार्च को जब उनको अदालत ने 7 साल की सजा के पुलिस द्वारा लगाए गए आरोप में अपराहन 3 बजे नागालैंड की अदालत ने जेल भेजने का आदेश पारित किया। ठीक उसी दिन सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश पारित किया कि पूरे देश भर की जेलों में जिन लोगों पर 7 साल का आरोप है, उन सबको केवल पहचान पत्र लेकर रिहा कर दिया जाए। उच्च स्तरीय राजनीतिक साजिश के कारण श्री विश्वात्मा को जेल से रिहा नहीं किया गया। किंतु अच्छी बात यह हुई कि जैसे ही श्री विश्वात्मा जेल गए जेल के कानून बदल गए। पहले जेल से फोन पर बात करना अपराध माना जाता था। किंतु जैसे ही श्री विश्वात्मा जेल गए, वैसे ही पूरे देश भर की जेलों में बंद सभी कैदियों को जेल से फोन करने का अधिकार दे दिया गया। जो वकील अदालत में उनकी पैरवी करना चाहे, उनको पैरबी नहीं करने दिया गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री शिवाकांत गोरखपुरी और नवीन कुमार का नागालैंड में अदालती कार्यवाही करने के लिए पहुंचे तो पुलिस ने नागा उग्रवादियों द्वारा उनका अपहरण करवा दिया गया। पुलिस ने किसी भी अपहरणकर्ता को गिरफ्तार नहीं किया। जबकि अपहरण के शिकार लोगों के फोन बीच-बीच में चालू करके फिरौती मांगा जाता था। अपहरण करने के बाद उनसे कहा गया कि पार्टी से लाकर 3 करोड़ रुपया फिरौती दें। अपहरणकर्ताओं में से एक व्यक्ति को पुलिस ने कथित रूप से अपराधी बनाकर उसी जेल के अंदर भेज दिया, जिसमें श्री विश्वात्मा बंद थे। उसने जेल में श्री विश्वात्मा से धन उगाही की डील करनी चाही, किंतु श्री विश्वात्मा ने उसकी एक न सुनी। उसने जेल प्रशासन को गुमराह करके श्री विश्वात्मा के विरुद्ध कर दिया। अपहरणकर्ताओं से पता चला कि श्री विश्वात्मा जब भी जेल से बाहर निकलेंगे, नागा उग्रवादियों द्वारा उनका अपहरण करके हत्या कर दिया जाएगा। नागालैंड पुलिस को आतंकवादियों के साथ मिला हुआ देखकर केंद्र सरकार से श्री विश्वात्मा के लिए जेल से बाहर निकलने पर केंद्रीय पुलिस सुरक्षा की मांगी गई। केंद्र सरकार ने नामंजूर करके आतंकवादियों का साथ देने का फैसला किया। इसलिए 27 अप्रैल को हाई कोर्ट से जमानत हो जाने के बाद भी श्री विश्वात्मा को 3 महीने से भी अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा। 2 महीने बाद जिस दिन उनको जेल से बाहर आना था, उसी दिन दूसरे जिले की पुलिस पहुंच गई और उनको बर्मा बॉर्डर पर पहाड़ों पर स्थित मोन जिले की जेल में ले जाकर बंद कर दिया। जहां उनको डेढ़ महीने तक रहना पड़ा। अदालती प्रक्रिया में यह साबित हुआ कि मोन जिले की पुलिस ने कथित 7 शिकायतकर्ताओं के फर्जी हस्ताक्षरों से श्री विश्वात्मा के खिलाफ चोरी से मुकदमा दर्ज करके रखा था। भारत के जाने मने वकील श्री प्रशांत भूषण और गुवाहाटी हिघ कोर्ट की वकील श्रीमती बबिता शर्मा गोयल की बहस सुनकर हाई कोर्ट गुवाहाटी ने एक ऐतिहासिक आदेश दिया. जिसके कारण लगभग 5 महीने बाद 4 अगस्त को पुलिस सुरक्षा में उनका जीवित बाहर आना संभव हो पाया। सन 2020 के अंत तक नागालैंड के दीमापुर और मोन जनपदों में श्री विश्वात्मा के खिलाफ दर्ज किया गया मुकदमा अभी भी विचाराधीन है और इन दोनों मुकदमों के खिलाफ गुवाहाटी उच्च न्यायालय में दायर श्री विश्वात्मा की याचिका भी विचाराधीन है। (The end)
इस वर्ष ग्वालपाड़ा जिले के दुधनई में, बारपेटा में (दो बार), रंगापारा में, उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में, मैनपुरी में राजनीति सुधारकों का प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। 10 और 11 दिसंबर 2019 को रंगिया में पार्टी के पदाधिकारियों को पार्टी के संगठन चुनाव से संबंधित प्रशिक्षण दिया गया। इन प्रशिक्षण शिविरों में 2,000 से अधिक लोग शामिल हुए। 7 जनवरी, 31 मार्च और 16 मई 2019 को असम के रंगिया में पार्टी के असम प्रदेश के पदाधिकारियों का सम्मेलन हुआ। इन दोनों सम्मेलनों में लगभग 1600 पदाधिकारी शामिल हुए। असम के बरपेटा जिले के जनिया, सत्य धर्म आश्रम में, कलगसिया में, बक्सा जिले के बरमा और सालीबारी में, दरंग जिले के मंगलदाई में (दो बार), उदालगुरी जिले के रौता में, ग्वालपाड़ा जिले के दुधनई में, धुबरी (दो बार) में पार्टी की जनसभाओं का आयोजन किया गया। इन जनसभाओं में कई हजार लोग शामिल हुए। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में और बिहार के बक्सर और काराकाट में भी पार्टी की जनसभाओं का आयोजन हुआ। 12 फरवरी 2019 को पार्टी के नीति निर्देशक श्री भरत गांधी का जन्म दिवस समारोह एक ........ रैली के रूप में मनाया गया। इस रैली में लगभग 25,000 लोग शामिल हुए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी भी इस समारोह में शामिल हुए। इसी समारोह में पार्टी कार्यकर्ताओं के निवेदन पर और अपने पूर्व में लिय गये संकल्प के अनुसार अपना नाम "भरत गांधी" से परिवर्तित करके "विश्वात्मा" करने की घोषणा की। पार्टी के तीसरे स्थापना दिवस के अवसर पर 17 नवंबर 2019 को रंगिया में (विजय दिवस) संपन्न हुई, जिसमें लगभग 1 लाख लोग शामिल हुए। 11 फरवरी 2019 को पार्टी के सुरक्षा वॉलिंटियर्स के और 13 फरवरी 2019 को पार्टी के विद्यार्थी संगठन का प्रशिक्षण शिविर असम के रंगिया में आयोजित किया गया। उक्त सभी प्रशिक्षण शिविरों को और जनसभाओं को श्री भरत गांधी ने संबोधित किया। सुबूतों के वावजूद जब सीबी सीआईडी ने अपहरण कर्ताओं और पुलिस अधिकारीयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया तब जनवरी, 2019 में एक प्रत्यावेदन के माध्यम से; श्री भरत गांधी ने सीबी सीआईडी की रिपोर्ट भारत सरकार के गृह मंत्रालय के समक्ष पेश की और सीबीआई जांच की मांग की. लेकिन गृह मंत्रालय अभी भी प्रत्यावेदन को ठंडे बस्ते में रखा हुआ है और भारत सरकार के गृह सचिव उस पर चुप्पी साधे हुए है. न्याय का अभी इंतजार है। 26 मार्च 2021 को इन पंक्तियों को लिखे जाने तक न्याय का अभी इंतजार है।
सन 2018 में असम के सोनितपुर जिले के रंगापारा में (दो बार), ढेकियाजुली में, कोकराझार शहर में, बोंगाईगांव में, रंगिया में (तीन बार) गुवाहाटी शहर में, सिपाखोआ में, धेमाजी में और बारपेटा में राजनीति सुधारकों का प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बिहार के पटना में भी ऐसे ही शिविरों का आयोजन हुआ। इन शिविरों में लगभग 5627 से अधिक लोग शामिल हुए। इन सभी शिविरों मैं श्री भरत गांधी ने प्रशिक्षण दिया। असम प्रदेश के चिरांग जिले के गोरुपाषा और गोरू बाजार में, कोकराझार जिले के गोसाई गांव में, दरंग जिले के बोटाबारी, मंगलदाई और खतरा में, सोनितपुर जिले के रंगापारा और थेलामारा में, उदालगुरी जिले के दिमाकुशी, लखीमपुर जिले के खेलपठार में, बक्सा जिले के बागानपारा और भगतपाड़ा में, नलबाड़ी जिले के देम्फू फील्ड क्लब में पार्टी की जनसभाओं का आयोजन हुआ। ऐसी ही जनसभाओं का आयोजन उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के सिकंदरा में, जौनपुर जिले के आनापुर में, फर्रुखाबाद में और रायबरेली में भी किया गया। झारखंड के गुमला में और रांची में भी पार्टी की जनसभाओं का आयोजन किया गया. मध्य प्रदेश के भोपाल में और उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कई राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन करके पार्टी की नीतियों से उनको परिचित कराया गया और आपस में जुड़ कर काम करने की अपील की गई. मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के रनगांव में भी पार्टी ने जनसभा का आयोजन किया। इन सभी जनसभाओं को पार्टी के नीति निर्देशक श्री भरत गांधी ने संबोधित किया।
इसी वर्ष एक दुखद घटना यह घटी कि पार्टी की केंद्रीय समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर रमेश चंद्र गुप्ता ने 10 जून 2017 को इस दुनिया से विदाई ले ली। अध्यक्ष का पद रिक्त हो गया। पार्टी की 24 सितंबर 2017 की साधारण सभा की बैठक बहुत महत्वपूर्ण थी। इस दिन पार्टी ने शून्य सदस्यता प्राथमिक सदस्यता और प्राथमिक सदस्यता संबंधी नियमावली को मंजूरी दी। इस दिन चंदा लेने और बदले में चंदे की रसीद देने संबंधी नियमावली को भी मंजूर किया गया। आर्थिक योगदान के बदले दानदाता को उसके द्वारा दी गई धनराशि उसे वापस मिल सके- इस संकल्प संबंधी नियमावली को भी इसी दिन मंजूरी दी गई। श्री विजय कुमार जैन को इसी बैठक में पार्टी की केंद्रीय कमेटी का अध्यक्ष चुना गया। इसके पहले वह पार्टी के उपाध्यक्ष थे। फरवरी से सितंबर के बीच असम के रंगिया, माझबत, सालीबारी, बिजनी, टंगला में पार्टी की जनसभाओं का आयोजन हुआ। इनमें कई हजार लोगों ने भाग लिया। 22 अगस्त को लखनऊ के गांधी भवन में पूरे उत्तर प्रदेश के लोकतंत्र सेनानियों का एक सम्मेलन आयोजित करके राजनीतिक सुधारों के बारे में उनको जानकारी दी गई। उत्तर प्रदेश में कन्नौज जनपद के अरौल में भी एक जनसभा आयोजित की गई। इसी साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच असम के ढेकियाजुली व मंगलदेई में तथा उत्तराखंड के ऋषिकेश में पार्टी का कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया गया। इन शिविरों में लगभग 2000 लोगों ने भाग लिया।10 अक्टूबर को रंगिया के डिस्ट्रिक्ट प्ले ग्राउंड में जो जनसभा आयोजित की गई, वह अब तक की रिकॉर्ड जनसभा थी। इसमें लगभग 20,000 लोग अपने खर्च पर आकर शामिल हुए। पार्टी का पहला स्थापना दिवस 17 नवंबर 2017 को दिल्ली के जंतर मंतर दिल्ली में मनाया गया। इसमें लगभग 12,000 लोग शामिल हुए। इसमें से लगभग 10,000 लोग लगभग 40 घंटे की रेल यात्रा करके असम से पहुंचे। यह दुखद रहा के इस यात्रा के दौरान 15 लोग गायब हो गए, जिसमें से सरकार तीन लोगों का पता अब तक नहीं लगा सकी। शायद वह शहीद हो गए.
कन्नौज के सामूहिक अपहरण मामले की जांच के लिए सीबी सीआईडी को अनुमति गृह सचिव ने तब जारी की, जब 2017 में हुए चुनाव के बाद अखिलेश सरकार सत्ता गंवा चुकी थी। 2 साल से ज्यादा की जांच के बाद सीबी सीआईडी ने पर्याप्त सबूत जुटाए , बावजूद इसके अपहरण के आरोपियों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया।
19 जून 2016 को पार्टी की साधारण सभा की बैठक हुई जिसमें संगठनात्मक चुनाव कराए गए, क्योंकि पार्टी के गठन के 4 वर्ष पूरे हो चुके थे। 14 से 17 फरवरी के के बीच असम के दरंग जिले के खारुपेटिया, लखीमपुर, कोकराझार, मंगलदाई और बिहार के बख्तियारपुर कस्बे में हुए चार दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में कुल 2998 लोगों ने भाग लिया। इसी साल फरवरी और मार्च में असम के रंगापारा, टंगला, उदालगुरी, दरंग, लखीमपुर में कई जनसभाओं का आयोजन किया गया। लखीमपुर और गुवाहाटी में प्रेस कॉन्फ्रेंस का भी आयोजन किया गया। दिनांक 22 अगस्त 2016 को पार्टी के नाम में "इंटरनेशनल" शब्द जुड़े होने पर (स्पष्टीकरण) चुनाव आयोग को भेजा गया।
नतीजतन उक्त जांच रिपोर्ट को एनआरसी ने रद्द कर दिया और सीबी सीआईडी जांच के लिए 24-02.2016 को आदेश पारित कर दिया। लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रमुख गृह सचिव ने सीबी सीआईडी को मामले की जांच की अनुमति नहीं दी। प्रदेश के प्रमुख सचिव- गृह और डीजीपी ने जानबूझकर एनएचआरसी के आदेश की अनदेखी की और याचिकाकर्ता को दो बार जरी आदेश के बाद भी पुलिस सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। जब याचिकाकर्ता द्वारा सूचना के अधिकार के तहत भेजे गए आवेदन के माध्यम से खतरे की आशंका के आकलन की रिपोर्ट मांगी गई थी; तो दोनों कार्यालयों ने रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया। राज्य सूचना आयोग ने खुद गलत आदेश जारी करते हुए डीजीपी और गृह सचिव को मांगी गई जानकारी देने के निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया। अपहरण कांड में मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत संलिप्तता देख राज्य सरकार से न्याय की उम्मीद खत्म हो गई। परिणामस्वरूप सभी तथ्यों को दिनांक 18.04.2016 और 02.07.2016 को केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव के समक्ष रखा गया और सीबीआई द्वारा जांच की मांग की गई और केंद्रीय बलों द्वारा श्री भरत गांधी की सुरक्षा की मांग की गई। केन्द्रीय गृह सचिव द्वारा इस आवेदन को अनुचित तरीके से उत्तर प्रदेश सरकार के उसी गृह सचिव को भेज दिया गया था, जो स्वयं अपराध में शामिल थे।
अपहरण कांड के मुख्य गवाह पर अत्याचार केवल यहां नहीं रोका गया. गवाहों पर दबाव बनाने के लिए और उनको श्री भरत गांधी के खिलाफ करने के लिए अमेठी जिला के एसपी ने इस मामले के मुख्य गवाह के खिलाफ जुलाई 2016 में गैंगरेप का झूठा मामला दर्ज करवा दिया लेकिन गिरफ्तारी नहीं किया। डीजीपी कार्यालय के अधिकारीयों और और मुख्यमंत्री उप्र के बदमाशों ने संयुक्त रूप से 04.07.2015, 31.01.2016 और 15.11.2016 को श्री भरत गांधी की हत्या करने के लिए तीन बार हमला किया। लेकिन किसी भी मामले में कोई भी एफआईआर उप्र पुलिस ने दर्ज नहीं की। दिनांक 06.06.2012 के सामूहिक अपहरण की शिकायत, गवाह के अपहरण की शिकायत दिनांक 05.05.2015 पर 4 साल बाद भी मुकदमा दर्ज नहीं किया गया था। कानून और व्यवस्था की मशीनरी को याचिकाकर्ता के खिलाफ देखते हुए याचिकाकर्ता को 156 सीआर.पी.पी.सी के तहत मामले दर्ज करने के लिए कन्नौज के जिला न्यायालय में व्यक्ति में जाना सुरक्षित नहीं था।
सन 2015 में राजनीति सुधारकों की कुल 4 ट्रेनिंग शिविरों का आयोजन किया गया। इन शिविरों का आयोजन असम के कोकराझार, ढेकियाजुली, लखीमपुर, रंगापारा, रंगिया, तामूलपुर, गोगामुख, मंगलदेई और बोंगाईगांव मे किया गया। इन शिविरों में लगभग 9065 लोगों ने प्रशिक्षण लिया। कोकराझार गोरेश्वर हरसिंगा और नौगांव में जनसभाओं का आयोजन भी किया गया, जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया।
कन्नौज अपहरण काण्ड के मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जवाब नहीं देने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले की जांच के लिए दिनांक 02.03.2015 को उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को आदेश पारित किया। जाँच अदिकारी, एएसपी कानपुर देहात श्री ऋषिपाल यादव ने पुलिस जांच के नाम पर साजिश रची। दिनांक 27.04.2015 को जांच के नाम पर मामले के मुख्य गवाह का उसके घर अमेठी से कर लिया गया, बेरहमी से उसे प्रताड़ित किया गया था, डीजीपी कार्यालय के मानवाधिकार विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा गन प्वाइंट पर लगभग एक रिम सादे कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए गए।
20 अगस्त 2015 को पार्टी की साधारण सभा की बैठक में पार्टी के संविधान के मसौदे पर विस्तृत चर्चा हुई। सन 2014 में राजनीति सुधारकों के कुल 6 ट्रेनिंग शिविरों का आयोजन किया गया। इन शिविरों का आयोजन असम के रंगिया में और उत्तर प्रदेश के एटा में किया गया। इन शिविरों में लगभग 2300 लोगों ने प्रशिक्षण लिया।
जब सुप्रीम कोर्ट की बात को उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने नहीं मन तो कन्नौज अपहरण कांड में केंद्रीय गृह मंत्रालय को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नोटिस जारी करते हुए जांच का आदेश दिया और श्री भरत गांधी को पुलिस सुरक्षा देने के लिए उचित कार्यवाही करने का निर्देश दिया। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आयोग का आदेश माननीय से मना कर दिया।
वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल के गठन के बाद पहली बैठक में दिनांक 12 जनवरी 2013 को पार्टी के लिए एक नई अनुदान नीति अपनाई गई। इसी बैठक में (पार्टी का संविधान) तैयार करने के लिए एक संविधान प्रारूप समिति का गठन किया गया।
23 जनवरी 2013 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री परिवार के खिलाफ सुरक्षा मांगने के लिए और (कन्नौज अपहरण कांड) का सीबीआई से जांच कराने के लिए पार्टी के संस्थापक भरत गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके स्वयं बहस किया। सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा के मामले की जांच करने और पुलिस सुरक्षा देने का आदेश उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को जारी किया। किंतु अपहरण कांड में सीबीआई जांच करने के लिए आदेश जारी नहीं किया। अखबारों ने इस (समाचार) को प्रमुखता से छापा।
19 से 22 सितंबर 2013 के बीच असम के बक्सा जिले के नाग्रीजुली में राजनीति सुधारकों को प्रशिक्षित करने के लिए चार दिवसीय ट्रेनिंग शिविर का आयोजन हुआ। इसमें लगभग 300 लोग शामिल हुए। ऐसा ही आयोजन 4 से 7 दिसंबर के बीच नग्रिजुली में दोबारा हुआ। जिसमें 350 लोग शामिल हुए। दिनांक 25 से 28 दिसंबर 2013 के बीच ऐसा ही एक प्रशिक्षण शिविर उदालगुरी जिले के गोराईमारी में आयोजित किया गया। इसमें 210 लोग शामिल हुए।
श्री भरत गांधी और उनके समर्थकों द्वारा कन्नौज के हजारों गांवों में चलाए गए अभियान के कारण सन् 2012 में कन्नौज की जनता का मूड पूरी तरह समाजवादी पार्टी के विरुद्ध बन गया था। उसी समय 6 जून 2012 को संसदीय उपचुनाव की घोषणा हो गई। श्री भरत गांधी की टीम ने कन्नौज लोकसभा उपचुनाव में अपना प्रत्याशी उतार दिया। किंतु सत्ताधारी समाजवादी पार्टी को जनता के मूड का एहसास हो गया।
यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने कन्नौज से 06 जून 2011 को हुए संसदीय उपचुनाव में अपनी पत्नी श्रीमती डिंपल यादव को संसद के लिए निर्वाचित कराने की साजिश रची। सीएम ने आईएएस और आईपीएस अधिकारियों और समाजवादी पार्टी के आपराधिक तत्वों को भी तैनात किया ताकि उपरोक्त उपचुनाव में नामांकन दाखिल करने की कोशिश कर रहे व्यक्तियों का अपहरण किया जा सके। अपहरण करने के बाद डीएम ने घोषणा की कि सीएम की पत्नी निर्विरोध सांसद चुनी गईं है। वीपीआई के दो अन्य नेताओं सदेश यादव और राम सिंह लोधी के साथ वोटर पार्टी इंटरनेशनल के उम्मीदवार प्रभात पाण्डेय का भी अपहरण किया गया था। चुनाव नहीं होने दिया। मुख्यमंत्री ने तत्कालीन कलेक्टर को और एसपी पर अपने पद के प्रभाव का दुरुपयोग करके अपनी पत्नी के नाम निर्विरोध निर्वाचित होने का प्रमाण पत्र हासिल कर लिया।श्री भरत गांधी के लिए यह नया अनुभव था। उन्होंने इस जुल्म के खिलाफ न झुकने का फैसला किया। हालांकि वह भलीभांति जानते थे कि प्रदेश के सबसे ज्यादा ताकतवर और खूंखार परिवार से लोहा लेना जान का जोखिम लेने से कम नहीं है। श्री गांधी ने उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट, भारत के सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में तत्कालीन मुख्यमंत्री और उनके अपराधिक सहयोगियो के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया। इसका परिणाम वही हुआ, जिसकी उनको पहले से आशंका थी। श्री भरत गांधी की जान को खतरा पैदा हो गया। तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने बड़ी-बड़ी अदालतों के आदेशों की अवहेलना करनी शुरु कर दी।
श्री भरत गांधी के निर्देश पर सीएम की पत्नी के चुनाव को हाईकोर्ट इलाहाबाद में चुनौती दी गई थी। नतीजतन श्री भरत गांधी, उनके परिवार के सदस्य और सहयोगी 6 जून 2012 के बाद से जान का खतरा पैदा हो गया. यह खतरा था- श्री अखिलेश यादव, वर्तमान मुख्यमंत्री से, प्रमुख सचिव एस देबाशीष पांडा से, यूपी राज्य के डीजीपी कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों से और सीएम के सहयोगियों से । कुछ समय बाद श्री भरत गाँधी के कई सहयोगियों को गन प्वाइंट पर अगवा कर बेरहमी से प्रताड़ित किया गया और आरोपी के अनुकूल बयान देने के लिए मजबूर किया गया है।
वोटरों को वोटरशिप का अधिकार दिलाने के प्रस्ताव की जाँच के लिए बनी जब संसद की गोयल कमेटी की सिफ़ारिशो को सरकार ने नहीं माना, तब सन 2012 में एक बार फिर से श्री गांधी को और उनके सहयोगियों ने एक नए नाम से पार्टी बनाने की सलाह दी। अपराध और आर्थिक शोषण की राजनीति से लड़ने के लिए जनता को विकल्प चाहिए था। वह विकल्प देना ही था। इसलिए नई पार्टी का गठन 20 अगस्त 2012 को किया गया। अब इस पार्टी का नाम रखा गया- वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल (वीपीआई)। ।
2005 से संसद में वोटरशिप अधिकार के लिए चल रही सांसदों की गोलबंदी पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने न तो कानून बनाया और न तो 8 मई को संसद में बहस ही होने दिया। किंतु मामले की गंभीरता समझकर कांग्रेस सरकार ने लोगों को नकद देने के रास्ते पर कदम बढ़ा दिया। इसी कदम के तहत सरकार ने आधार कार्ड कानून बनाया। गणित यह थी कि यदि लोग सरकार द्वारा दिए गए पैसे को कई बैंक खातों से निकासी करें, तो पकड़े जायें। सन 2010 में सरकार ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम बनाकर गरीबों को 25 किलो अनाज लगभग निशुल्क देना शुरू किया। लगभग 3 लाख करोड रुपए की रकम खाद्य सुरक्षा अधिनियम के बजट में रखा गया. इससे देश के एबी मानसिकता के खरबपति नाराज हो गए। उन्होंने कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाने का रास्ता ढूंढना शुरू किया। इसी बीच सन 2011 की जनवरी में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आरोपी मोबाइल कंपनियों के मालिकों की गिरफ्तारी शुरू हो गई।
मोबाइल सेवाएं देने वाली कंपनियों के मालिकों को जब जेल का डर दिखा तो उन्होंने कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाने के लिए अप्रैल 2011 में लोकपाल के नाम से आंदोलन शुरू कर दिया। मीडिया की ताकत से यह भ्रम पैदा कर दिया गया जैसे जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी हो गयी है. कुछ लोगों को इसमे मोहरा बनाया गया. इस नकली भ्रष्टाचार आंदोलन को रोकने के लिए श्री भरत गांधी ने लोकतांत्रिक लोकपाल विधेयक बनाया. इस विधेयक को राष्ट्रपति के सम्मुख 25 मई 2011 को प्रस्तुत किया। इस घटना ने जनलोकपाल के नाम से चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ नकली आंदोलन का पर्दाफाश कर दिया।
लोकपाल विधेयक पर काम करने वाली स्टैंडिंग कमेटी के निमंत्रण पर स्टैंडिंग कमिटी के सामने श्री भरत गांधी 21 अक्टूबर 2011 को पेश हुए। वहां उन्होंने भ्रष्टाचार बढ़ाने वाले (जनलोकपाल) का विरोध किया। उनकी बात को संसद की कमेटी ने मान लिया। अंततः जनलोकपाल के नाम से चलाई गई खरबपतियों की साजिश नाकाम हो गई। यद्यपि 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन कराने में खरबपति लोग कामयाब हो गए। श्री भरत गांधी की दूरदर्शी क्षमता उस समय एक बार फिर से प्रमाणित हुई, जब जनलोकपाल के नाम पर दिल्ली की सत्ता में आए लोग खुद जनलोकपाल बनाने से पीछे हट गए।
श्री भरत गांधी जिस दिन लोकपाल की स्टैंडिंग कमेटी के सामने प्रस्तुत हुए, उसके एक मात्र 2 दिन बाद 23 अक्टूबर 2011 को वोटरशिप के लिए बनी राज्यसभा की गोयल कमेटी के निमंत्रण पर राज्यसभा के अधिकारियों की कमेटी के सामने पेश हुए। जिस वोटरशिप अधिकार पर सैकड़ों सांसद सहमत हो चुके थे। उस प्रस्ताव को अधिकारी व्यवहारिक और अनुचित मानते थे। श्री भरत गांधी के पेश होने के बाद सब के विचार बदल गये। गोयल कमेटी ने सर्वसम्मति से वोटरशिप अधिकार के संबंध में संसदों द्वारा प्रस्तुत श्री भरत गांधी की याचिका को स्वीकार करने की सिफारिश कर दी। जिसको बाद में एक शाजिश के तहत लटका दिया गया।
सन् 2010 में पार्टी के प्रेरणास्रोत श्री भरत गांधी और उनके समर्थकों ने यह देखा कि उन्होंने अमेठी और रायबरेली में जो अभियान चलाया, उसका लाभ समाजवादी पार्टी को मिल रहा है। क्योंकि जनता के बीच उन्होंने कोई राजनीतिक विकल्प पेश नहीं किया। जबकि संसद में समाजवादी पार्टी के प्रमुख श्री मुलायम सिंह यादव भी वोटरशिप के विरुद्ध साजिश में शामिल थे। इस अनुभव के बाद सब की राय बन गई कि हम लोगों को एक राजनीतिक पार्टी का गठन करना चाहिए। यद्यपि यह काम बहुत मुश्किल था। क्योंकि खरपतियों के इशारे पर नाचने वाली बड़ी राजनीतिक पार्टियों से सामना करना लगभग असंभव था। फिर भी यह तय किया गया यह चुनौती स्वीकार किया जाये। सन 2010 में पार्टी का गठन किया गया, जिसका नाम रखा गया-वोटर्स पार्टी। इसी नाम से पार्टी की वेबसाइट, फेसबुक पेंज और यूट्यूब चैनल शुरू कर दिया गया। यह तय किया गया कि पार्टी का पंजीकरण कुछ दिन तक नहीं कराया जाए। जिससे जन आंदोलन पहले पैदा हो। आंदोलन से निकले हुए लोगों को पार्टी का संस्थापक बनाया जाए। किंतु श्री भरत गांधी के साथ काम कर रहे दिल्ली और इटावा के कुछ लोगों ने श्री भरत गांधी के साथ विश्वासघात किया। उन्होंने चुपके-चुपके इसी पार्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए भारत के चुनाव आयोग में आवेदन प्रस्तुत कर दिया। इस विश्वासघात के खिलाफ श्री भरत गांधी ने दिल्ली हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया। हाई कोर्ट ने सन् 2011 में आदेश दिया कि "हो सकता है कि याचिका करने वाले ही पार्टी के वास्तविक संस्थापक हों। किंतु याचिकाकर्ताओं ने चूंकि पार्टी को पंजीकृत कराने के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा पहले नहीं खटखटाया। इसलिए जिन लोगों ने खटखटाया, उनको पंजीकरण देने से हाईकोर्ट चुनाव आयोग को नहीं रोक सकताा"।
अमेठी और रायबरेली के बाद श्री भरत गांधी और उनके समर्थक तत्कालीन केंद्र सरकार का अंदर से समर्थन कर रहे श्री मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की तरफ मुखातिब हुए। सन् 2008 के अक्तूबर महीने में लखनऊ विधानसभा के सामने 43 लोगों ने अनशन शुरू शुरू कर दिया। अनशनकारियों ने समाजवादी पार्टी के मुखिया से मांग किया कि चूूंकि वोटरशिप का मुद्दा विशुद्ध समाजवादी मुद्दा है। इसलिए श्री मुलायम सिंह यादव संसद में वोटरशिप के मुद्दे पर बहस कराने के लिए कांग्रेस पार्टी को तैयार करें, या कांग्रेस सरकार से अपना समर्थन वापस लें। समाजवादी पार्टी के मुखिया ने श्री भरत गांधी को आश्वासन दिया कि वह अपने समर्थकों को अनशन समाप्त करने के लिए कहें। उन्होंने मौखिक रूप से वादा किया कि ‘‘मैं आगामी संसद के सत्र में वोटरशिप पर बहस जरुर करवाऊंगा"। बाद में समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया श्री मुलायम सिंह यादव विश्वासघात कर गए। उन्होंने बहस कराने की बात तो छोड़िए, इस मामले में दोबारा से कोई संवाद करना भी ठीक नहीं समझा। इसके बाद श्री भरत गांधी और उनके समर्थकों ने यह तय किया कि जो काम उन्होंने अमेठी और रायबरेली में किया है, अब वही काम मुलायम सिंह के क्षेत्र इटावा और कन्नौज में करेंगे। इस फैसले के बाद श्री भरत गांधी और उनके समर्थक कन्नौज चले गए और वहां गांव-गांव पदयात्राएं शुरू कर दीं। लगभग डेढ़ हजार गांव में वाल पेंटिंग की। श्री गांधी ने स्वयं केवल कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में 42 जनसभाओं को संबोधित किया। इससे क्षेत्र की जनता का मन बदल गया। समाजवाद के खिलाफ काम करने वाले श्री मुलायम सिंह को सबक सिखाने के लिए जनता चुनाव का इंतजार करने लगी। यह मौका सन् 2012 में तब आया, जब श्री अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद सांसद पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी सीट खाली हो गई। कन्नौज की खाली सीट पर उनकी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ने की घोषणा हो गई। श्री भरत गांधी के समर्थकों ने तय किया कि श्री मुलायम सिंह जी के बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सीट पर अपना प्रत्याशी उतारा जाए। ऐसा ही किया गया। किंतु बाद में एक बड़ी आपराधिक वारदात घट गई जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव स्वयं शामिल थे।
सन् 2008 में सांसदों का ऐतिहासिक ध्रुवीकरण देखकर तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री श्री प्रियरंजन प्रियरंजन दासमुंशी ने श्री भरत गांधी को बुलाया। शास्त्री भवन में लंबी बातचीत हुई। अंत में वह भी वोटरशिप के समर्थक हो गए। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से वोटरशिप के प्रस्ताव पर बहस करने के लिए हम तैयार हैं। आप लोकसभा अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी को तैयार करिए। श्री गाँधी ने श्री चटर्जी को भी वोटरशिप का प्रस्ताव समझ में आ गया। अब यह तय हो गया कि लोकसभा में एक दिन नियम 193 के तहत बहस आयोजित की जाएगी। संसद भवन के इस फैसले के बाद पहली बार श्री भरत गांधी के इस प्रयास को पूरे देश के अखबारों ने हर भाषा में प्रमुखता से प्रकाशित किया। इस खबर से यह समाचार पहली बार पार्टियों के अध्यक्षों तक और देश-विदेश के खरबपतियों और राजनयिकों तक पहुंचा। इस समाचार को पढ़कर एबी मानसिकता वाली क्रूर ताकतें हरकत में आ गयीं। संसद में बहस होने के एक दिन पहले सभी पार्टियों के प्रमुखों ने आपस में बात करके यह तय कर लिया कि बहस रोकने के लिए संसद का आकस्मिक सत्रावसान कर दिया जाए। ऐसा ही हुआ। 8 मई 2008 को संसद का आकस्मिक सत्रावसान कर दिया गया। वास्तविक लोकतंत्र को धरती पर उतारने की कोशिश नाकाम कर दी गई। आर्थिक तंगी में तड़पती हुई जनता को संसद से कुछ राहत मिल सकती है, यह आशा टूट गई। सन् 2008 में संसद भवन में देश के वोटरों के खिलाफ की गई साजिश पर श्री भरत गांधी ने पहली बार अपनी कलम उठाई और छोटी सी पुस्तक लिखी। इस पुस्तक का नाम था ‘‘आर्थिक नरसंहार के खिलाफ महाभारत’’। इस पुस्तक ने जबरदस्त लोकप्रियता पाई। उसकी हजारों प्रतियां देखते ही देखते बिक गई। श्री भरत गांधी और उनकी टीम इस नतीजे पर पंहुची कि जनता की आर्थिक दुर्दशा के लिए सांसद और विधायक जिम्मेदार नहीं है। अपितु पार्टियों के अध्यक्ष जिम्मेदार हैं। जो पूरी तरह देश-विदेश के खरबपतियों के चंगुल में हैं। उनसे चंदा प्राप्त करने के लिए और सत्ता में बने रहने के लिए कठपुतली की तरह नाच रहे हैं। इसे लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता। अब यह प्रमाणित हुआ कि यह शासन तंत्र लोकतंत्र नहीं है अपितु कठपुतली तंत्र है। इस नकली लोकतंत्र की पूरी कहानी को जनता के बीच सुनाने का फैसला किया गया। जिन क्षेत्रों से पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव लड़ते थे, उन क्षेत्रों में जाकर संसद में घटी घटना को बताने का फैसला किया गया। अपनी इसी नीति के तहत श्री भरत गांधी और उनके समर्थक दिल्ली से अमेठी और रायबरेली चले गए। रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर सन् 2008 में कार्यालय खोला। वहां लगभग ढाई हज़ार गांवों में पैदल यात्रा करके उनके समर्थकों ने संसद की पूरी कहानी अमेठी और रायबरेली की जनता को बताया। स्थानीय जनता से जबरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ। एक अक्टूबर और 14 नवम्बर, 2008 को कर्म सर अमेठी में और रायबरेली में श्री भरत गांधी की दो विशाल जनसभाएं संपन्न हुई। यहीं से इन क्षेत्रों में कांग्रेस के पतन की शुरुआत हुई।
सन् 2005 में पार्टी के श्री भरत गांधी ने दिल्ली में अपनी एक छोटी सी टीम बनाई। सांसदों के घर-घर जाकर राजनीतिक सुधारों और वोटरशिप के अधिकार के फायदे और इन प्रस्तावों को लागू करने के व्यावहारिक पहलुओं पर बातचीत शुरू की। श्री गांधी ने इस विषय में संसद की याचिका समिति के समक्ष अपनी याचिका प्रस्तुत करने का निवेदन किया। श्री भरत गांधी को ऐसा करने की सलाह भारत के जाने-माने संविधान विशेषज्ञ लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉक्टर सुभाष कश्यप ने दिया था। सन् 2005 से लेकर 2007 तक लगभग 300 से ज्यादा सांसद श्री भरत गांधी के प्रस्ताव के समर्थन में आ गए। श्री भरत गांधी के वोटरशिप के प्रस्ताव को एक याचिका के रूप में संसद में पेश करने का सिलसिला शुरू हो गया। रोजाना समर्थक सांसदों की संख्या बढ़ती जाती थी। नोटिस देने वाले सांसदों की संख्या बढ़ती गई। संसद में आए दिन बहस के दौरान प्रसंगवश वोटरशिप के प्रस्ताव के कुछ हिस्से को सांसदों ने बोलना करना शुरु कर दिया। श्री भरत गांधी के निवेदन पर सभी पार्टियों के सांसदों ने मिलकर एक सर्वदलीय संगठन बनाया जिसका नाम रखा गया- "वोटर शिप के लिए सांसद परिषद"। सांसदों के इस संगठन ने तय किया कि वोटरशिप के प्रस्ताव पर बहस कराने के लिए सरकार पर दबाव डाला जाए। सांसदों ने श्री भरत गांधी से निवेदन किया कि बहस के लिए सांसदों को तैयार करें। संसद में बहस की तैयारी के लिए सांसदों के साथ श्री भरत गांधी की गोष्ठियों की सिलसिला शुरू हो गया। संसद की कार्यवाही के बाद शाम को दर्जनों सांसद श्री भरत गांधी के बुलावे पर किसी ने किसी सांसद के निवास पर पहुंचते थे और रात में 8 बजे से लेकर 11 बजे तक वह श्री भरत गांधी की बात सुनते थे। गोष्ठियोंं के दौरान सांसदगण तर्क-वितर्क करते थे और वोटरशिप के माध्यम से वास्तविक लोकतंत्र को अमलीजामा पहनाने के लिए अध्ययन करते थे। यह सिलसिला सन 2006 से अप्रैल 2008 तक चला।
सन् 2002 से लेकर सन 2004 तक 3 वर्षों में पार्टी श्री भरत गांधी ने मेरठ व बिहार में 500 से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया। जिसमें उनको अपार जनसमर्थन मिला। यह प्रमाणित हो गया जिन राजनीतिक सुधारों की रूपरेखा उन्होंने एकांतवास में तैयार की थी, आम जनता इन सुधारों के पक्ष में है। सन 2003 में बिहार में चंपारण के टाउन हॉल में जब श्री भरत गांधी एक सभा को संबोधित कर रहे थे। सभा के बाद प्रश्नोत्तर सत्र में जीर्ण शीर्ण सैकड़ों सुराखों वाली बनियान पहने अधेड़ उम्र के एक किसान ने उनसे सवाल किया। किसान ने कहा कि ‘‘इतने बड़े देश में अगर आप जगह-जगह जाकर लोगों को समझाएंगे तो बहुत वक्त लगेगा। इस बीच गरीबी से लाखों लोग मर जाएंगे। उस किसान ने प्रश्न पूछा "आप यह बात दिल्ली के सांसदों को क्यों नहीं समझाते"? उसने आगे कहा कि अगर संसद सदस्यगण समझ गए तो कानून बन जाएगा और अगर वह लोग विरोध करेंगे तब जनता को अपनी भूमिका समझ में आएगी’’। चंपारण के उस किसान की बात श्री भरत गांधी को पसंद आई। उन्होंने जनसभाओं का अभियान बंद करने और मेरठ छोड़कर दिल्ली जाने का फैसला किया। उन्होंने तय किया कि अब वह अपनी बात आम जनता को बताने की बजाय सांसदों को बताएंगे। इस तरह सन् 2005 में शुरू हुआ सांसदों को समझाने का अभियान।
सन् 2001 में 20 जनवरी को श्री भरत गांधी को मेरठ के जिलाधिकारी के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया। कारण केवल इतना था कि मेरठ में स्थित कताई मिल मजदूरों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के योजना के तहत बाध्य किया गया कि वे सरकार से पैसा लेकर नौकरी छोड़ दें। मजबूर होकर श्रमिक ऐसा करने को तैयार हो गये। किंतु एक उच्चस्तरीय साजिश के तहत उनको धोखा दे दिया गया। उनको जो चेक दिया गया, उसमें उनके स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के नियमानुसार जो पैसा बनता था, उसका दो या चार प्रतिशत रकम ही लिखा गया। तत्कालीन कलेक्टर, तत्कालीन उद्योग सचिव व तत्कालीन स्थानीय विधायक ने संयुक्त रुप से जबरदस्ती उनके मकानों में ताला डाल दिया। श्री भरत गांधी के समक्ष यह दुख मिल कर्मचारियों ने बताया। कर्मचारियों ने बताया कि ठिठुरती ठंड में वे लोग गत एक सप्ताह से अपने घरों के बाहर बैठकर समय काट रहे हैं। ठंड से बचने के लिए कालोनी की झोपड़ियों को जला कर रात काट रहे हैं। कॉलोनी की बिजली काट दी गई है। पानी का कनेक्शन बंद कर दिया गया है। मकानों में ताली मारकर चाभी कलेक्टर ने मंगवा लिया है। सामान उठाकर घर ले जाने के लिए चार-छह हजार रूपये के चेक दिए हैं। वह पैसा भी भुगतान करने से बैंक मैनेजर को रोक दिया गया है। वह न तो घर जा सकते हैं, न तो कम्पनी परिसर में रह सकते हैं। यह अत्याचार देखकर श्री भरत गांधी ने कहा कि मैं कलेक्टर से बात करने के लिए उनके कार्यालय जा रहा हूं। उन्होंने सलाह दिया कि दो चार मिल कर्मचारियों को मेरे साथ चलना चाहिए। लेकिन वहां ढाई हजार लोग श्री गांधी के साथ हो लिये। तीन घंटे की पैदल यात्रा के बाद शाम लगभग 7:00 बजे कलेक्टर निवास पहुंचे। सभी लोग ठिठुरती ठंड से परेशान थे। स्थानीय चौकीदार को गेट खोलने को कहा। उसने नहीं खोला। कुछ मजदूरों ने गेट को जबरदस्ती खोल दिया। सभी लोग अंदर जाकर कलेक्टर का इंतजार करने लगे। सरकारी कर्मचारियों ने कलेक्टर को खबर कर दिया कि उनका मकान कब्जा हो चुका है। उनका परिवार मकान छोड़कर भाग चुका है। तख्तापलट की कार्यवाही हो गई है….। कलेक्टर ने एसपी को फोन किया और लाठीचार्ज करने का आदेश दिया। ऐसा ही हुआ। श्री भरत गांधी ने सुबह पानी भी नहीं पिया था। उनको गंभीर चोटें आई। बेहोशी की अवस्था में उनके हाथ में हथकड़ी लगाई गई। उनको हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां रात में 1 बजे उनको होश आया। उनको सुबह जेल भेज दिया गया। कुछ दिन बाद आतंकवादी करार देते हुए जिलाधिकारी द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्यवाही करके 1 वर्ष तक के लिए जेल में निरुद्ध दिया गया। जेल जाकर उन्होंने यह फैसला किया कि वह जेल में केवल जीने के लिए रोज एक रोटी खाएंगे। गलत ढंग से गिरफ्तार किए जाने के खिलाफ उन्होंने जेल में सत्याग्रह शुरू कर दिया। उन्होंने यह भी तय किया कि अपने साथ गिरफतार किये गये 32 मिल कर्मचारियों को जेल से रिहा कराने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। उन्होंने यह भी संकल्प लिया कि न तो वह अदालती प्रक्रिया में झूठ बोलेंगे, न ही पैसा खर्च करेंगे और न ही कोई वकील करेंगे। रासुका (NSA) कानून के तहत लखनऊ हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों का उच्चस्तरीय आयोग मामले की जांच करने के लिए बनाया गया। जिसके सामने श्री भरत गांधी ने सारी बात सच-सच बता दिया। हाईकोर्ट के उच्च स्तरीय आयोग ने श्री भरत गांधी को 3 महीने बाद बाइज्जत आरोप मुक्त कर दिया और प्रदेश के राज्यपाल से सिफारिस कर दिया कि श्री भरत गांधी को जेल से रिहा कर दिया जाय। अगले दिन स्थानीय अदालत में जो मुकदमा चल रहा था, उसमें भी अदालत ने फैसला सुना दिया और यह आदेश दिया कि श्री भरत गांधी सहित जेल में बंद 32 लोग बेकसूर है। उनको साजिश करके जेल में भेजा गया है। इसलिए एफआईआर करने वाले तत्कालीन कलेक्टर के स्टेनोग्राफर के खिलाफ अदालत ने स्वतः संज्ञान लेकर सीआरपीसी की धारा 340 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। मेरठ की स्वतंत्र सिंह अदालत ने मुकदमा निरस्त करते हुये श्री भरत गांधी सहित 32 लोगों को जेल से रिहा करने का आदेश कर दिया। बाद में इस मामले पर श्री भरत गांधी ने हाईकोर्ट में के कलेक्टर के खिलाफ मुकदमा करके स्वयं बहस किया। अदालत में मुकदमा स्वीकार किया। 15 साल तक सुनवाई नहीं किया। अंत में 1 दिन अदालत ने इस मुकदमे को खारिज कर दिया। श्री भरत गांधी ने मैथ मजदूरों के बकाया राशि दिलाने के लिए लखनऊ हाई कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया। तुम तो लगभग 15 साल बाद हाई कोर्ट इस मुकदमे को भी खारिज कर दिया। मिल मजदूरों को उनकी बकाया राशि नहीं मिल पाई। मिल का कैंपस खाली हो गया और खंडहर बन गया।
सन् 2000 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने संविधान में कमियों की जांच पड़ताल करने के लिए एक आयोग बनाया। इस आयोग के अध्यक्ष थे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एम. वेंकटचलैया। उस आयोग के द्वारा देश के संविधान में मूल ढांचे में कोई छेड़छाड़ न हो सके और उत्थान की बजाय पतन की ओर देश को न ले जाया जा सके, इसके लिए श्री भरत गाँधी के नेतृत्व में संविधान समीक्षा के लिये एक निजी कमेटी बनाई गई। संविधान संशोधन का एक मसौदा तैयार किया गया। इस मसौदे पर आम जनता की राय जानने के लिए श्री भरत गांधी ने मेरठ जनपद के लगभग 150 गांवों की पैदल यात्रा की। 15 अगस्त 2000 को लगभग ढाई सौ लोग अनेक गांवों से मेरठ कलेक्ट्रेट पर संविधान संशोधन के मसौदे का समर्थन करने के लिए जमा हुए। भारत के संविधान संशोधन के मसौदे पर श्री भरत गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से चर्चा की। श्री वी. पी. सिंह जी ने इस मामले में पूर्व प्रधानमंत्री श्री इंद्रकुमार गुजराल से चर्चा किया। श्री बी. पी. सिंह ने उनसे निवेदन किया कि भरत गांधी को लेकर वह तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के. आर. नारायणन के पास जाएं और पूरे मामले से राष्ट्रपति को परिचित कराएं। ऐसा ही हुआ। राष्ट्रपति ने श्री भरत गांधी के प्रयासों को सराहा। उन्होंने कहा कि इस संविधान के संशोधन के प्रस्ताव पर उनके कार्यालय को सीमित अधिकार हैं। लेकिन जो कुछ भी संभव होगा, वह अवश्य करेंगे।
सन् 1999 में वोटरषिप अधिकार दिलाने के लिए श्री भरत गांधी के बुलावे पर मेरठ में एक गांधीवादी नेता व उद्योगपति श्री कृष्ण कुमार खन्ना के आवास पर लगभग 15 स्थानीय समाजसेवकों की एक बैठक हुई। इस बैठक में एक संगठन बना। जिसका नाम रखा गया-आर्थिक आजादी आंदोलन परिसंघ। 1 साल पहले 14 दिन के अनशन के कारण मेरठ के तमाम लोग श्री भरत गांधी के संपर्क में आ गए थे। अनशन की घटना के कारण श्री भरत गांधी का एकांतवास समाप्त हो चुका था। उनमें से कई लोग इस पक्ष में थे कि श्री गांधी को गोपनीय रहकर लिखने-पढ़ने की बजाय जो कुछ लिखा है, उसके प्रचार प्रसार में समय देना चाहिए। यह संगठन लगातार बढ़ता गया। पहले कुछ समय तक स्थानीय मीडिया ने अनसुना किया। किंतु बाद में स्थानीय मीडिया ने भी इस संगठन के समाचार देने शुरू कर दिया। बाद में 2005 में इसी संगठन की ओर से संसद सदस्यों के बीच वोटरशिप के लिये अभियान चलाया गया।
सन् 1997 में वोटरशिप अधिकार की खोज होने के बाद पार्टी के प्रेरणाश्रोत श्री भरत गांधी ने मेरठ के एक गांव- "डिग्गी" में 8 महीने तक रोजाना सर्वेक्षण किया। गांव के परिवारों में एक-एक सदस्य के सामने वोटर पेंशन का विचार रखा और उनकी प्रतिक्रिया मांगा। यह आश्चर्यजनक था कि जो प्रतिक्रियाएं उस एक गांव के लोगों की थी, वही प्रतिक्रियाएं बाद में संसद सदस्यों की देखने को मिली। इसी बीच एक जुलाई 1998 को मेरठ में गरीबी के कारण एक किसान परिवार के मुखिया ने अपने दोनों बच्चों को जहर दे दिया, अपनी पत्नी को जहर दे दिया और खुद भी जहर खा कर मर गया. 8 साल की बच्ची को डॉक्टरों ने हॉस्पिटल में बचा लिया। यह खबर अखबारों में प्रमुखता से छपी. खबर पढ़कर पार्टी के प्रेरणाश्रोत श्री भरत गांधी को ऐसा लगा कि जैसे उस गरीब परिवार की मौत के लिए जिम्मेदार वह स्वयं हैैं। उनका निष्कर्षष था कि वोटर पेंशन का अधिकार मिल चुका होता तो यह परिवार गरीबी से न मरता। सुबह समाचार पढ़ने के बाद दिन भर उनको भूख नहीं लगी। अगले दिन भी भोजन नहीं किया। तीसरे दिन भी भूखे रहे। चौथे दिन भी भोजन करने से मना कर दिया। पांचवें दिन मामला गंभीर हो गया। उनकी जान पहचान के लोगों ने बहुत पूछताछ की। तब उन्होंने कारण बताया। वह राजनीतिक लोग थे। इसलिए उन्होंने इसको अनशन माना। उन लोगों ने स्थानीय जिलाधिकारी को इसकी खबर करते हुये बता दिया कि श्री भरत गांधी चाहते हैं कि मां-बाप के मर जाने के बाद राष्ट्रपिता की ओर से जीवित बच गई बालिका को उसके खाते में देेश की औसत आय की आधी रकम रू. 1750 प्रति माह (सन 1998 की कीमतों पर) दिया जाये। उनके जान पहचान के लोगों ने श्री भरत गांधी को एकांतवास से ले जाकर कलेक्टर कार्यालय के समक्ष बैठा दिया। इस प्रकार पार्टी के प्रेरणाश्रोत श्री भरत गांधी का व्यक्तिगत प्रायश्चित एक राजनीतिक अनशन में बदल गया। जब कलेक्टर को बात पता चली तो उसने क्रोध में आकर कहा कि "हम कुछ नहीं करेंगे। मरना हो तो मर जाओ"। इसके बाद छठवां दिन बीता। सातवां दिन, आठवां दिन और नौवां दिन बीता। दसवें दिन सरकारी डॉक्टरों की टीम ने रिपोर्ट लगा दिया कि अनशनकारी कभी भी मर सकता है। इसके बाद कलेक्टर के कहने पर रात में 11 बजे श्री भरत गांधी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और हॉस्पिटल ले जाकर जबरदस्ती खाना खिलाने के लिये व ग्लूकोज लगाने की कोशिश की। श्री गांधी ने पुलिस की एक न सुनी। हारकर पुलिस वालों ने रात में 1 बजे अनशनकारी को सिविल लाइंस थाने ले गये। वहां लाठियों से पीटने और बिजली का करंट लगाकर खाना खिलाने का आदेश मिला। किंतु श्री गांधी से बात करके थाना अध्यक्ष की राय बदल गई। उसने श्री गांधी को यातनाएं न देने का फैसला किया और अपने ऊपर के अधिकारियों को बता दिया कि हम अपनी नौकरी से इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन इस आदमी को यातनाएं नहीं नहीं दे सकते। पुलिस ने श्री गांधी को रात 2 बजे कचहरी ने उसी जगह छोड़ दिया, जहां से उठाया था। अनशन का 11वां दिन बीता। बारवां दिन बीता। तब जाकर अखबारों ने इस खबर को छापा। क्योंकि इस खबर को देने के लिए कलेक्टर ने अखबार वालों को रोक रखा था। खबर पढ़ने के बाद वहां के स्थानीय विधायक मौके पर पहुंचे। तत्कालीन को केंद्र सरकार के कृषि मंत्री श्री सोमनाथ शास्त्री के माध्यम से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई तक यह मामला पहुंचाया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक लाख रूपये का चेक उस लड़की के नाम से मंजूर किया, जो लड़की आत्महत्या कर गए परिवार में जीवित बच गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अनशनकारी भरत गांधी को संदेश भेजते हुये कहा कि वह लड़की के लिए राष्ट्रपिता की ओर से 1750 रूपया हर महीना जीवन-यापन भत्ता मांग रहे हैं। एक लाख रुपया बैंक में जमा होगा तो 18 प्रतिशत ब्याज की दर से 18 सौ रुपए हर महीने लड़की को मिलेगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने श्री गांधी से निवेदन किया कि उनकी मांग मान ली गई है, इसलिये वह अनशन समाप्त कर दें। मेरठ के गणमान्य लोगों खासकर सर्वोदय नेता कृष्ण कुमार खन्ना के आग्रह पर श्री भरत गांधी ने 14 वें दिन अनशन समाप्त किया। अब उनके सामने केवल एक लड़की को ही नहीं, हर वोटर को वोटरशिप अधिकार दिलाने की चुनौती थी।
श्री भरत गांधी ने किसी अखबार में छपे लेख में पढ़ा कि देश में "ह्वाइट कालर जाब" यानी सरकारी नौकरी की मांग करने वाले लोग बहुत हैं। लेकिन देश में प्राइवेट सेक्टर में काम करने के लिए आदमी नहीं मिल रहे हैं। श्री भरत गांधी ने जब अखबार में यह बात पढ़ ,तो उन्हें ऐसा लगा जैसे उन्हें उनके कई साल पुराने प्रश्न का उत्तर मिल गया हो। उन्हें लगा कि मजदूर बाजार में जाकर अगर वह मजदूरी का काम करते हैं तो शायद किसी की रोजी रोटी नहीं छिनेगी। 1997 के गर्मी के दिनों में मजदूरी करने के लिए श्री भरत गांधी सुबह-सुबह मजदूर बाजार जाने लगे।उन्हें यह उम्मीद जगी कि अपना संकल्प की सुरक्षा करते हुए अपने लिए आय का जरिया पैदा कर सकेंगे।
मजदूर बाजार में लगभग साढ़े तीन महीने जाने के बाद पता चला कि वहां स्थिति बहुत विकराल है। काम की तलाश में श्री भरत गांधी मजदूर बाजार में सुबह 6 बजे पहुंच जाते थे। 11 बजे अपने घर पर वापस चले जाते थे। उन्हें मजदूर बाजार में भी काम नहीं मिलता था। श्री भरत गांधी ने 3 महीने बाद वहां आने वाले मजदूरों से उनकी आमदनी जानना चाहा। तब यह पता चला कि अधिकांश मजदूर काम नहीं पाते और 11 बजे वापस अपने घरों पर चले जाते हैं। तब उनके दिमाग में अचानक बिजली की तरह यह बात कौंध गई कि मशीनों ने लोगों के रोजगार छीन लिया हैं। मशीनों की मजदूरी मशीन मालिकों के पास और मशीन की फैक्ट्री मालिकों के पास जा रही है। अगर मशीन की मेहनत और मजदूरी की गणना कर ली जाए और उसे मजदूरों में बांट दिया जाए तो बेरोजगारी की समस्या समाप्त हो जाएगी। इसी को बाद में रणनीतिक कारणों से "वोटर पेंशन" कहा गया और 2004 में इसी को "मतकर्ताव्रित्ति" या "वोटरशिप" कहा गया।
सन 1996 में श्री भरत गांधी मेरठ पहुंचे। उनके सामने यह चुनौती थी कि विधानसभाओं और भारत की संसद को सहमत कैसे किया जाए? लेकिन इसके पहले चुनौती यह थी कि संसद तो बड़ी चीज है अपने आसपास के लोगों को सहमत कैसे किया जाए? तरह-तरह के मतभेद आसपास के लोगों को ही सहमत नहीं होने देते। इसलिए जब तक मतभेदों का प्राकृतिक कारण और जीव वैज्ञानिक कारण पता न चल जाए तब तक सब को समझाया नहीं जा सकता। इस चुनौती से जूझते हुए श्री भरत गांधी शमशान जाने लगे। वहां भीड़ होती थी किन्तु एकांत भंग होने का खतरा नहीं था। मतभेदों का वास्तविक कारण क्या है? मतभेदों की प्राकृतिक वजह क्या है? मतभेदों का जीव वैज्ञानिक कारण क्या है? इस तलाश में लंबे समय तक श्री भरत गांधी भटकते रहे। बहुत लोगों से मुलाकातें किया। लेकिन कहीं संतोषजनक जवाब नहीं मिला। आईएएस की तैयारी के दौरान उन्होंने बहुत सारे विषयों को शौकवश पढ़ा था। उनमें भी कहीं जवाब नहीं मिला। अखबारों को गंभीरता से पढ़ने की आदत थी। वहां भी जवाब कहीं नहीं मिला। विश्वविद्यालयों के कई प्रोफेसरों के संपर्क किया। लेकिन इस प्रश्न का संतोषजनक जवाब कहीं नहीं मिला। धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में महारत हासिल किए हुए लोगों से भी मुलाकात किया। किंतु वहां भी इसका जवाब नहीं मिला। थक हार कर उन्हें एक समय ऐसा लगने लगा कि शायद उनका उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। उन्हें अपने संकल्पों को भंग करना पड़ेगा। परिवार से आर्थिक सहयोग मांगना उन्होंने बंद कर दिया था। आर्थिक तंगी के गंभीर घुटन से गुजर रहे थे। यहां तक कि एक छोटे से रूम का कई महीनों तक किराया नहीं दे पाए। इसलिए उन्हें वह छोटा सा रुम भी छोड़ कर अपने छोटे भाई के हॉस्टल में जाकर रहना पड़ा। किंतु बाद में मेरठ प्रवास संसार के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। हालांकि स्वयं पार्टी के संस्थापक श्री भरत गांधी के लिए वह एक भयावह स्वप्न जैसा था। आर्थिक तंगी के जिस दारुण पीड़ा से उन्हें गुजरना पड़ा, ऐसा उन्होंने जीवन में कभी नहीं देखा था। उनका संकल्प था कि वह किसी की रोजी रोटी छीन कर अपना रोजगार नहीं करेंगे और अपने लिए आय का जरिया नहीं बनाएंगे। एक वक्त ऐसा भी आया जब उनका यह संकल्प टूटते टूटते बचा। उन दिनों जब वह श्मशान पर दिन में जाया करते थे। रात में उन्हें सपने आने लगे। उस सपने में ही उन्हें अपने दिन भर के प्रश्नों की गुत्थियां समझ में आने लगीं। वह 2 या 3 बजे रात उठ जाया करते थे। सपने से जगकर उस प्रश्न के उत्तर पर कुछ रेखा चित्र बना देते थे। रेखा चित्र बना कर सो जाते थे। यह सोचते थे कि सुबह उठकर रेखा चित्रों की व्याख्या करेंगे। यह प्रक्रिया सन् 1998 तक चली। सपनों के माध्यम से एक बहुत ज्ञानपुंज उन्हें मिला। जिसे वह लगातार लिपि बद्ध करते गए। वह कितने पृष्ठों में समा गया कि उसको छपवाना मुश्किल हो गया। उन्होंने कई हजार पृष्ठ एक कंप्यूटर टाइपिस्ट से टाइप करवाया। इस उम्मीद में कि उसके टाइप का खर्च कोई-न-कोई मिलेगा और भुगतान कर दे देगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। एक दिन टाइपिस्ट ने क्षुब्ध होकर लगभग डेढ़ साल मैं टाइप किया गया सारा मैटर अपने कंप्यूटर से डिलीट कर दिया। पांडुलिपियों में वह आज भी मौजूद है। श्री भरत गांधी को स्वप्न में जो बातें पता चलीं। वह उनके भविष्य के चिंतन का आधार बनीं। बाद में उन्होंने जितने भी राजनीतिक व वैज्ञानिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सुधारों संबंधी प्रस्ताव तैयार किया। उन सब का स्रोत वही ज्ञान है, जिसको बाद में उन्होंने एक शब्द दिया- जीरोपैथ। जीरोपैथ के ज्ञान पर ही श्री भरत गांधी की एक पुस्तक पैदा हुई जिसका नाम रखा गया- "जनोपनिषद"। पुस्तक और उसका दर्शन आगे चल कर सन् 2012 में वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल का सिद्धांत बना।
श्री भरत गांधी के हाथ उन दिनों बहुत छोटे थे। शैक्षिक सुधारों के बारे में संसद से और विधानसभाओं से मंजूरी प्राप्त कर पाना उनके लिए संभव नहीं था। अब भरत गांधी के सामने दो रास्ते थे। एक रास्ता यह था कि अपने नामी-गिरामी एनजीओ के नाम से सरकार से फंड मंजूर करवाएं और अपनी रोजी रोटी का इंतजाम करें। दूसरा रास्ता यह था कि वह हिम्मत न हारें और कोई ऐसा रास्ता निकालें जिससे संसदीय मंजूरी मिल सके और विधानसभाओं की मंजूरी मिल सके। श्री भरत गांधी ने दूसरा रास्ता चुना। परिणाम स्वरुप उनको यह बात समझ में आई कि संसद और विधानसभाओं को समझाने के लिए केवल शिक्षा में सुधार पर्याप्त नहीं है, आम जनता का दुख दर्द भी समझना होगा। उनका निष्कर्ष था कि कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए जिससे देश की आम जनता भी उनकी बातों को पसंद करें और उनकी बातें बड़े राजनीतिक दल मानना शुरू कर दें। विश्व व्यापार संगठन की स्थापना करने वाले गैट (GATT) नाम की विवादित अंतरराष्ट्रीय संधि गत वर्ष 1994 में संपन्न हुई थी। सन 1991 से लगातार चल रहे विरोध के बावजूद भी इस संधि पर भारत सरकार ने 15 अप्रैल 1994 को भी हस्ताक्षर कर दिए थे। श्री भरत गांधी का निष्कर्ष था कि इस अंतर्राष्ट्रीय संधि ने कंपनियों पर शासन करने के सरकार के अधिकारों को लगभग समाप्त कर दिया है। उनका निष्कर्ष था कि अब अर्थव्यवस्था विश्वव्यापी हो चुकी है और राजव्यवस्था देशों की सीमाओं के अंदर कैद है। इसकी वजह से समाज अराजक स्थिति में पहुंच चुका है। भरत गांधी का उस समय निष्कर्ष था कि अबे कैसी विश्वराज व्यवस्था कायम किया जाना जरूरी है, जो विश्व अर्थव्यवस्था का संचालन और विनियमन कर सकें। भारत के संसद और अन्य देशों की सरकारों की मंजूरी के बिना यह काम संभव नहीं था। उक्त निष्कर्षों के कारण श्री भरत गांधी ने महसूस किया कि आम जनता के तकलीफों का कारण और उसका निवारण सोचने और लिखने के लिए उनको एकांत चाहिए। एकांत की तलाश में उन्होंने अपनी लोकप्रिय कर्मभूमि इलाहाबाद (प्रयागराज) को छोड़कर 1996 में मेरठ चले गए, जहां उनका छोटा भाई उन दिनों एमबीबीएस का कोर्स करने चला गया था।
सन 1994 कि फरवरी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इस छात्र- भरत राम यादव की उम्र 25 वर्ष हो गई थी। अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ पिछले 2 वर्षों से आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन को इस छात्र ने अपनी आंखों से देखा था। इस आंदोलन के कारण सवर्ण सहपाठियों ने इस छात्र का बहिष्कार किया। क्योंकि छात्र पिछड़े वर्ग से संबंधित था। उसके सामानों को रूम में छोड़कर दोनों सवर्ण पाटनरों ने अलग रूम ले लिया। उस समय यह छात्र पैतृक गांव गया था। सवर्ण छात्रों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार को देखकर इस छात्र के मन में जातिवाद के विरुद्ध विद्रोह पैदा हो चुका था। इस विद्रोह की मनोदशा में छात्र ने अपने 25 वे जन्मदिन के मौके अपना नाम बदलकर "भरत गांधी" रखने का फैसला किया।
नाम बदलकर इस छात्र ने जातीय पहचान की बजाय राष्ट्रीय पहचान के साथ जीवन जीने का फैसला किया। उसका निष्कर्ष यह था कि राष्ट्रपिता की टाइटल "गांधी" होने के नाते देश के समस्त राष्ट्र पुत्रों और राष्ट्र पुत्रियों की टाइटल "गांधी" ही होना चाहिए। इस निष्कर्ष के कारण अब इस छात्र को "भरत राम यादव या भरत आर. यादव" की जगह "भरत गांधी" के नाम से जाना गया। नाम परिवर्तन के इस फैसले को सभी अखबारों ने प्रमुखता से छापा। इलाहाबाद की मीडिया में राष्ट्रीय शिक्षा और शोध फाउंडेशन "नेफर" की 1994 औ र 1995 में लगभग प्रत्येक माह 2 कालम से लेकर 8 कलम तक की खबरें छपने लगीं। दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, स्वतंत्र भारत, अमृत प्रभात, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, न्यूज़लीड जैसे तमाम राष्ट्रीय और स्थानीय अखबार श्री भरत गांधी द्वारा किए जा रहे शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव सुझाव से अभिभूत थे। इलाहाबाद आकाशवाणी भरत गांधी के व्याख्यान को सप्ताहिक परिक्रमा कार्यक्रम में नियमित प्रसारित करने लगा था।
सरकार के शिक्षा विभाग ने श्री भरत गांधी द्वारा प्रस्तावित शैक्षिक सुधारों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया। इसका एक बड़ा कारण यह था कि भरत गांधी की उम्र बहुत कम थी और वह एक लाइसेंसी शिक्षाविद नहीं थे। दूसरा कारण यह था कि उनके द्वारा खोजे गये शैक्षिक सुधारों को लागू करने के लिए संसद की और दो तिहाई विधानसभाओं की मंजूरी आवश्यक थी। 1995 आते-आते भरत गांधी को मीडिया शिक्षाविद मान चुकी थी किंतु सरकार मानने के लिए तैयार नहीं थी।
लगभग 1 साल की अवधि बीतने के बाद सन 1993 इस होनहार छात्र भरत राम यादव ने केवल सिविल सेवा के परीक्षा का वहिष्कार ही नहीं किया, अपितु अपनी पढ़ाई छोड़ने का और अपने शैक्षिक जीवन का अंत करने का फैसला भी कर लिया। इस छात्र ने अपने परिवार के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि उसके विवाह के जिन रस्मों को पूरा किया जा चुका है, उनको यहीं पर रोंकना चाहता है। इस छात्र ने परिवार को यह भी सूचना दिया कि वह आईएएस नहीं बनना चाहता। उसने यह भी कहा कि वह कोई ऐसा रोजगार भी नहीं करेगा, जिससे किसी दूसरे की रोजी-रोटी छिनती हो।
अपने परिवार के इस होनहार बालक की बात सुनकर परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। क्योंकि इस किसान और मजदूर परिवार ने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर इस बच्चे को पढ़ाया था। बच्चे की प्रतिभा को देखकर यह उम्मीद पाला था कि यह बच्चा एक दिन इस परिवार के सारे कष्टों को हर लेगा। फिर भी परिवार ने इस बालक के इतने गंभीर और आत्मघाती फैसले का साथ देने का फैसला किया। इसका कारण यह था कि इस बालक ने बचपन से कभी कोई गलत फैसला नहीं लिया था। इस बच्चे का जन्म मुंबई शहर के एक फैक्ट्री श्रमिक परिवार में 1969 में हुआ था। एक श्रमिक के लिए मुंबई में बच्चे को पढ़ाना संभव नहीं था. इसलिए पिता ने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने पैतृक जिले उत्तर प्रदेश के जौनपुर में भेज दिया। इस बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई।
जब भरत राम यादव नाम के इस छात्र ने अपने शैक्षिक जीवन को अंत करने का फैसला किया, तब उसके पास कोई काम नहीं था। इसलिए सन् 1993 में इस छात्र ने अपनी 24 साल की उम्र में शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने के लिए एक स्वैच्छिक संगठन पंजीकृत कराया। जिसका नाम रखा- नेशनल फाउंडेशन ऑफ एजुकेशन एंड रिसर्च, नेफर। हिंदी में इसको "राष्ट्रीय शिक्षा और शोध फाउंडेशन" कहा जाता था। इस संगठन ने देखते ही देखते इलाहाबाद में ख्याति हासिल कर ली।
वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल (वीपीआई) के जन्म की जड़ें 1992 में घटी कुछ घटनाओं में है। इन घटनाओं का संबंध इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी से है। इस विद्यार्थी का नाम था- भरत राम यादव। जो बाद में भरत गांधी और विश्वात्मा के नाम से जाना गया। 1992 में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया था। यह विद्यार्थी इस परीक्षा में पहली बार शामिल हुआ था। इस परिणाम में इस विद्यार्थी को चयनित घोषित किया गया था। अन्य सफल उम्मीदवारों की तरह इस विद्यार्थी को भी मुख्य परीक्षा के लिए लोक सेवा आयोग ने आमंत्रित किया था। अपने साथ के बन विद्यार्थियों से अलग रास्ता अपनाते हुए इस विद्यार्थी ने मुख्य परीक्षा का बहिष्कार करने का फैसला किया। इसका कारण यह था कि यह विद्यार्थी इस बात से व्यथित था कि उसके साथ के सीनियर आईएएस के परीक्षा परिणाम में असफल घोषित कर दिए गए थे। उनके परिवार में मातम था। इस विद्यार्थी को लगा यदि वह आईएएस की नौकरी लेने में कामयाब हो जाता है तो वह दूसरे परिवारों के दुख का कारण बनेगा। वह दूसरे के नौकरी छीन लेगा।
अपने मात्र 23 साल की उम्र में इस विद्यार्थी ने फैसला किया कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिससे किसी दूसरे की रोजी रोटी छिनती हो। इसी संकल्प ने इस विद्यार्थी के जीवन का रास्ता बदल दिया। यही संकल्प बाद में जहां एक तरफ इस विद्यार्थी को दुखों के भयावह दरिया में धकेल दिया, वहीं दूसरी तरफ पूरे विश्व की मानवता के लिए जीवन का एक नया रास्ता भी खोल दिया। यही संकल्प 20 वर्ष बीतने के बाद सन 2012 में वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल के जन्म का कारण बना।