वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल
2012 का कन्नौज अपहरण काण्ड
वोटरों को जन्मजात आर्थिक अधिकार और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक अधिकार देने के लिए पार्टी संस्थापक की याचिका को 100 से भी अधिक सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया था और नोटिस लेकर संसद में बहस की मांग की थी। याचिका सन 2005 से 2011 के बीच संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की गई थी। सत्ताधारी दल और मुख्य विपक्षी दलों के अध्यक्षों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। जबकि "ओ मानसिकता" के सांसदों ने समर्थन किया था। इसीलिए नई पार्टी बनाकर केवल पार्टी अध्यक्षों के चुनाव क्षेत्रों में ही उनको राजनीतिक चुनौती देने का फैसला किया गया था।
कन्नौज अपहरण कांड का घटनाक्रम.
पार्टी अध्यक्षों के चुनाव क्षेत्रों में ही उनको राजनीतिक चुनौती देने का फैसले के मद्देनज़र कन्नौज में उपचुनाव आने पर सन 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव की पत्नी के विरुद्ध पार्टी ने अपना पहला प्रत्याशी खड़ा करने का फैसला किया। प्रत्याशी सहित पार्टी के तीन नेताओं का मुख्यमंत्री ने पुलिस और अपराधियोंं के सहारे 6 जून 2012 को दिनदहाड़े कलेक्टर ऑफिस से अपहरण करवा लिया। देखें सम्बंधित समाचार साथ में दो और लोगों का अपहरण हुआ। सादेश यादव और राम सिंह लोधी। यह दोनों क्रमशः मैनपुरी और औरैया जिले के थे.
कन्नौज अपहरण कांड पर की गयी कानूनी कार्यवाही का घटनाक्रम.
विश्वात्मा ने की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी
डेढ़ महीने बाद 23 जुलाई 2012 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में श्रीमती डिंपल यादव के चुनाव पर चुनाव याचिका दाखिल करके आपत्ति दर्ज की गई। हाईकोर्ट में न पेश होने के कारण जब एक तरफा फैसला सुनाने का आदेश उच्च न्यायालय ने दिया, तब डिंपल यादव अपने वकील के माध्यम से पेश हुई और वकील वही व्यक्ति था गजेंद्र सिंह, जो मुख्यमंत्री का पीआरओ था और पूरे अपहरण कांड का मास्टरमाइंड था। इसके बाद प्रत्याशी को और पार्टी के मुखिया श्री भरत गांधी को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं . VPI के प्रमुख श्री भरत गांधी ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन दाखिल करके कन्नौज अपहरण कांड में स्वयं बहस की और माननीय सुप्रीम कोर्ट से सीबीआई जांच की मांग की व खुद अपने लिए और प्रत्याशी के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी 2013 कोआदेश देते हुए सीबीआई जांच से मना कर दिया किंतु भरत गांधी और उनकी पार्टी के प्रत्याशी को पुलिस सुरक्षा देने के लिए उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक कोआदेशित कर दिया। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन अखिलेश सरकार ने 5 साल तक नहीं होने दिया। सुप्रीम कोर्ट से न्याय ना मिलता हुआ देखकर श्री भरत गांधी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में 11 नवंबर 2013 को पिटीशन दाखिल कर अपने लिएसुरक्षा मांगी। साथ ही सीबीआई की जांच भी मांगी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जांच के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश शासन का नंगा नाच
2 मार्च 2015 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस की समस्त जांच रिपोर्ट को रद्द करते हुए पुलिस महानिदेशक को आदेश का दिया कि वह अपने स्तर पर जांच कराकर रिपोर्ट भेजें। आयोग केआदेश मिलने पर कानपुर देहात के ASP ऋषि पाल सिंह यादव जांचअधिकारी बनाए गए. जिन्होंने जांच कम की, अपराध ज्यादा। उन्होंने अभियुक्तों और अपराधियों को लेकर जबरदस्ती गवाहों के घर पर छापा मारकर मनमर्जी बयान देने के लिए विवश किया। पार्टी के प्रत्याशी प्रभात पांडे को उसके घर से 27 अप्रैल 2015 को दोबारा अपहरण कर लिया गया। असहनीय यातनाएं दी गईं। सैकड़ों सादे पन्नों परहस्ताक्षर करा लिया गया अपनी मनमर्जी का जबरदस्ती बयान लिखवा लिया गया, समाजवादी पार्टी मेंजबरदस्ती भर्ती कर लिया गया। गायत्री प्रजापति के माध्यम से उसके ऊपर बलात्कार कामुकदमा दर्ज कर लिया गया। इस मुकदमे में भरत गांधी को फसाने की कोशिश की गई। प्रभात पांडेय टूट गया और उनके साथ हो जाने के लिए विवश हो गया। किंतु फोन रिकॉर्ड हो जाने के नाते श्री भरत गांधी ने आयोग को सीडी सौंप दिया। आयोग ने अगलाआदेश 16 अक्टूबर 2016 कोकिया और आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की गई कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी। किंतु पुलिस महानिदेशक को यह रिपोर्ट भेजने से अखिलेश यादव सरकार ने रोक दिया।
भरत गांधी पर सपा के गुंडों द्वारा कई हमले
इस बीच भरत गांधी के लखनऊ निवास पर 4 जुलाई 2015 को हथियारबंद लोगों ने हमला कर दिया। किंतु भरत गांधी दिल्ली में थे, इसलिए बच गए। हमले की जानकारी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दी गई। मानवाधिकार आयोग ने 24 फरवरी 2016 को आदेश देते हुए उत्तर प्रदेश के गृह सचिव देवाशीष पांडा को कहा कि वह पूरे मामले में सीबीसीआईडी से जांच कराएंऔर भरत गांधी और उनके परिवार को सुरक्षा मुहैया कराएं और 6 सप्ताह के अंदर रिपोर्ट सबमिट करें। किंतु अखिलेश सरकार ने सीबीसीआईडी को जांच करने की अनुमति नहीं दी।सीबीसीआईडी ने 8 सितंबर 2016 को श्री भरत गांधी को पत्र भेजते हुए बताया कि मेरी एजेंसी को जांच करने कीअनुमति शासन से नहीं मिल रही है, 4 बार प्रयास किया गया। यह जानकारी श्री भरत गांधी ने मानवाधिकार आयोग को सौंप दिया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सामने एक ही रास्ता था कि उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह श्री देबाशीष पांडा को गिरफ्तारी वारंट जारी करके गिरफ्तार करके दिल्ली बुलाया जाये। लेकिन तब तक सरकार बदल गई और चार अप्रैल 2017 को योगी सरकार की तरफ से शासनादेश जारी कर दिया गया और सीबीसीआईडी को जांच की अनुमति दे दी गई। 15 दिन बाद 19 अप्रैल को गृह सचिव की ओर से नया आदेश जारी करते हुए श्री भरत गांधी को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दे दिया गया, जो सुरक्षा अभी तक नहीं मिली है। क्योंकि खुफिया विभाग में अभी भी अखिलेश के लगाए हुए अधिकारी और कर्मचारी काम कर रहे थे जो बार बार सुरक्षा जांच के नाम पर झूठी रिपोर्ट सरकार को भेज रहे थे।
उ. प्र. प्रदेश सरकार की मंजूरी मिलते ही कन्नौज अपहरण कांड में सीबीसीआईडी ने जांच शुरु हुई
सी.बी. सी.आई.डी. ने सबसे पहले याचिकाकर्ता और वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल (वीपीआई) प्रमुख भरत गांधी का बयान जानकीपुरम विस्तार लखनऊ में उनके आवास पर रिकॉर्ड किया। अपने बयान में भरत गांधी ने बताया कि कन्नौज अपहरण कांड की पूरी साजिश पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा अपनी पत्नी को कन्नौज लोकसभा क्षेत्र से निर्विरोध सांसद बनाने के लिए द्वारा रची गई थी, क्योंकि फिरोजाबाद में राजबब्बर से हारने के बाद अखिलेश यादव फिर से कोई जोखिम नही लेना चाहते थे। वीपीआई प्रमुख ने बताया कि उनकी पार्टी के प्रभात पांडे, सादेश यादव और राम सिंह लोधी का उस समय अपहरण कर लिया गया, जब प्रभात पाण्डे कन्नौज लोकसभा क्षेत्र उपचुनाव के लिए वीपीआई के के प्रतिनिधि के तौर पर अपना नामांकन पत्र दाखिल करने जा रहे थे।
कन्नौज अपहरण काण्ड के पीछे चुनाव अधिकारियों और सपा नेताओं के बीच गठजोड़
याचिकाकर्ता भरत गांधी ने बताया कि शहर की पुलिस अपहरणकर्ताओं की खुलेआम मदद कर रही थी। तत्कालीन जिलाधिकारी सिल्वा कुमारी जे. पूरे अपहरण कांड की संरक्षिका थीं और चुनाव आयोग की बजाय अखिलेश यादव के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रही थीं। श्री गांधी ने सीबी सीआईडी को बताया है कि अपहरण करने के लिए सभी अपराधियों को सफेद कुर्ते-पायजामे और सफेद पैंट-शर्ट में लगाया गया था। शायद ऐसा इसलिए किया गया था कि उनको पहचानना मुश्किल हो। अपहरण के लिए ललकारने वाले लोग अलग थे, जो नामांकन करने वाले लोगों को दबोच कर उनके नामांकन पत्रों को फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर देते थे और हवा में उड़ा दिया दिया करते थे। इसके बाद बारी आती थी स्थानीय पुलिस अधिकारियों और कोतवाल की, जो नामांकन करने वालों और उनके प्रस्तावकों को मारते-पीटते और धकियाते हुए कन्नौज कलेक्ट्रेट परिसर में खड़ी उन चमचमाती गाड़ियों में धकेल देते थे, जिन पर समाजवादी पार्टी का झण्डा लगा रहता था। गाड़ी में पहले से बैठे हुए अपराधी अपनी पिस्तौल अपहरण का शिकार लोगों की कनपटी पर लगाकर गाड़ी की सीट के नीचे दुबककर बैठ जाने के लिए विवश करते थे। इसके बाद अपहरण के शिकार लोगों की आंखों पर गमछा बांध दिया जाता था, जिससे वह किसी व्यक्ति को या किसी जगह को पहचान न सकें। फिर गाड़ी का ड्राइवर अपहरण के शिकार लोगों को किसी कोल्ड स्टोर में ले जाता था, जहां पर उनके आंखों पर बंधे गमछे को खोल दिया जाता था और पानी पिलाया जाता था। इसके बाद आंखों पर पट्टियां दोबारा बांधकर किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया जाता था, जहां सैकड़ों लोगों को अपहृत करके सप्ताह भर से रखा गया था।06 जून 2012 को नामांकन पत्र भरने की अंतिम तिथि थी। उस दिन शाम को अपहरण के शिकार सभी लोगों को सुदूर जंगलों में ले जाकर छोड़ दिया गया। यद्यपि यह जांच का विषय है कि कुछ लोगों की हत्या की गयी, या नहीं।
राजनीतिक सुधारने के लिए सपा से सीधे टकराए विश्वात्मा
राजनीतिक सुधार के लिए भरत गांधी का प्रस्ताव लगभग सभी पार्टियों के 137 सांसदों ने संसद में पेश किया था। राज्य सभा की स्टैंडिंग कमेटी ने सन 2011 में भरत गांधी की कुछ बातें लागू करने की सिफारिश भी की थी। इसके बावजूद भी जब कानून नहीं बना, तो श्री गांधी के देशव्यापी समर्थकों ने वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल का गठन किया। यह पार्टी राजनीति से अपराध दूर करने के एजेंडे पर कार्य कर रही है। इसलिए पार्टी ने अपहरण काण्ड के शिकार कुछ लोगों से सम्पर्क किया और संयुक्त रूप से कानूनी कार्यवाही करने की मांग की। किन्तु अपहरण के शिकार लोग अपहरण के दौरान दी गयी यातनाओं से इतने भयभीत थे कि किसी ने भी इस आपराधिक वारदात के विरुद्ध पुलिस या अदालत में आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की। अन्त में यह कानूनी लड़ाई वोटर्स पार्टी इण्टरनेशनल को अकेले ही लड़नी पड़ी। यहां तक कि पार्टी के जिन लोगों को कानूनी कार्यवाही करने के लिए अधिकृत किया गया, अखिलेश यादव ने अपने हथियारबंद अपराधियों को उनके घरों पर भेजकर डराया और धमकाया और कानूनी कार्यवाही से हाथ खींच लेने के लिए विवश कर दिया। इसलिए अंत में कानूनी कार्यवाही का सारा जिम्मा भरत गांधी को खुद अपने हाथ में लेना पड़ा। इसीलिए श्री गांधी ने कन्नौज अपहरण कांड को लेकर 22 जनवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट में स्वयं बहस की और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में सारी कानूनी कार्यवाही स्वयं अपने नाम से की। हालांकि इसके लिए उनके ऊपर अखिलेश यादव ने 3 बार जानलेवा हमला कराया किन्तु संयोगवश तीनों बार वह सुरक्षित रहे। इन हमलों के बारे में भी सीबी सीआईडी जांच कर रही है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कन्नौज अपहरण कांड की जांच सीबीसीआईडी से कराने का आदेश पिछले साल 24 फरवरी 2016 को उ. प्र. सरकार को दिया था। किंतु अखिलेश यादव के दबाव में गृह सचिव देवाशीष पाण्डा ने आयोग के आदेश का पालन करने से मना कर दिया। मना करने की यह जानकारी सीबीसीआईडी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को और याचिकाकर्ता भरत गांधी को 8 सितम्बर, 2016 के पत्र के माध्यम से उस समय दी, जब सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी गई। सीबीसीआईडी द्वारा दी गई जानकारी मिलने के बाद आयोग अगला आदेश जारी करने वाला था, किंतु तब तक प्रदेश में सरकार बदल गई।आदित्यनाथ योगी सरकार ने मानवाधिकार आयोग के आदेश के अनुपालन में गत 3 अप्रैल 2017 को शासनादेश जारी करके प्रदेश की सीबीसीआईडी को कन्नौज अपहरण कांड और भरत गांधी के ऊपर किए गए जानलेवा हमलों के मामले में जांच करने की अनुमति दे दी। इस जांच को कराने के लिए सीबीसीआईडी हेडक्वार्टर ने कानपुर के आईजी को अधिकृत किया है। आयोग के निर्देशानुसार भरत गांधी को पुलिस सुरक्षा देने संबंधित कार्यवाही भी प्रदेश के गृह मंत्रालय द्वारा .मंत्रालय द्वारा की जा रही है।