धर्म हृदयहीन संसार का हृदय है
आज के इस पूंजीवादी समाज ने मनुष्य और मनुष्य के बीच नग्न निजीस्वार्थ और ‘नगद पैसे-कौड़ी’ के हृदयशून्य व्यवहार के अलावा कोई संबंध नहीं छोड़ा है। ऐसे हृदयहीन पूंजीवादी संसार के लिए धर्म एक हृदय की भूमिका निभाता है। इस धर्म के नाते ही बहुत से हृदयहीन पूंजीपति लोग भी दान, चंदा, चढ़ावा के रूप में कभी कभार गरीबों की मदद कर देते हैं इसलिए कार्ल मार्क्स ने धर्म को हृदयहीन संसार का ह्रदय भी कहा था ।
धर्म अमीरों की शान और गरीबों की सिसकियां है
वर्गों से बटे हुए समाज में अमीर और गरीब के लिए धर्म के अलग-अलग मायने होते हैं जहां अमीर लोग बड़ी शान से कहते हैं ‘यह सारी दौलत ऊपर वाले ने मुझे दिया है’ वहीं गरीब लोग सिसक-सिसक कर, आह भर कर रोते और गिड़गिड़ाते हुए प्रार्थना करते हैं- ‘हे भगवान हमारे ऊपर भी रहम करो।’ धर्म के इस रूप को देखकर कार्ल मार्क्स ने कहा था धर्म अमीरों की शान और गरीबों की सिस्कियां है ।
धर्म निरुत्साह का उत्साह है
जब मानव समाज प्रकृति की शक्तियों के सामने असहाय दिख रहा था आज की तरह कोई वैज्ञानिक खोज भी नहीं हुई थी उस वक्त वह प्रकृति के सामने हिम्मत हारता जा रहा था तो उस वक्त देवी देवता या ईश्वर का सहारा वाले विचारों से उत्साहित हो जाता था । आज भी जब कोई गरीब आदमी मुसीबतों में घिरा होता है, कोई उसका मददगार नहीं होता तब उसका साहस खत्म हो रहा होता है ऐसी परिस्थिति में धर्म अर्थात ईश्वर का सहारा वाले विचारों से उसकी हिम्मत बढ़ जाती है इस तरह धर्म निरुत्साह का उत्साह भी है।
धर्म अफीम का गोला है
शोषक वर्ग के बहकावे में आकर, जनता जब यह मान लेती है कि उसके ऊपर होने वाला शोषण, दमन, अन्याय, अत्याचार, बलात्कार सब कुछ ईश्वर की इच्छा से हो रहा है। तथा जब शोषक वर्ग धर्म के नाम पर जनता को गुमराह करता है धार्मिक उन्माद फैलाकर जनता को जनता से लड़ाता है और जनता भी शोषक वर्ग के बहकावे में आकर अपने रोजी रोटी के सवाल भूल कर आपस में लड़ती है धर्म के नाम पर इंसानियत के खिलाफ लूटपाट आगजनी हिंसा बलात्कार पर आमादा हो जाती है। धर्म की इसी नकारात्मक भूमिका तू देख कर कार्ल मार्क्स ने कहा था -धर्म अफीम का गोला है।
मार्क्स के बारे में झूठा प्रचार
परंतु पूंजीपति वर्ग की मीडिया और पूंजीपति वर्ग के दलाल धर्म के संबंध मे कार्ल मार्क्स द्वारा कही गई पूरी बात नहीं बताते हैं वे सिर्फ यही बताते हैं कि कार्ल मार्क्स ने “धर्म को अफीम का गोला कहा था” इसी आधार पर सभी मार्क्स को धर्म का दुश्मन बताते हैं, इतना ही नहीं, वे मार्क्स को धार्मिक लोगों का भी दुश्मन करार देते हैं, परंतु यह सच नहीं है, वास्तव में,मार्क्स को किसी धर्म से कोई नफरत नहीं होती। उनकी दुश्मनी सिर्फ शोषक वर्ग से थी। शोषण दमन उत्पीड़न के खिलाफ इंसानियत की हिफाजत के लिए लड़नेवाला किसी भी धर्म को मानता हो, मार्क्स उसे अपनी जान से प्यारा मानते हैं।
इतिहास गवाह है,रूसी क्रान्ति को विफल करने के लिये उस दौरान शोषक वर्ग ने जो धार्मिक दंगे भड़काए थे, उससे रूस में लगभग 2000 चर्च व मस्जिदें क्षतिग्रस्त हुई थीं क्रान्ति के बाद लेनिन ने उन सभी धर्मस्थलों की मरम्मत करवायी।
आज भी अमेरिकी साम्राज्यवाद वीगुर मुसलमानों के नाम पर फर्जी वीडियो बनाकर चीन की कम्यूनिस्ट सरकार को बदनाम कर रहा है। सिर्फ इसलिए कि मुसलमान लोग मार्क्सवाद से घृणा करें।
मार्क्स को धार्मिक लोगों का दुश्मन बता कर शोषक वर्ग के लोग जनता को मार्क्स से दूर करना चाहते हैं ताकि उनके द्वारा किए जा रहे शोषण दमन उत्पीड़न अन्याय अत्याचार के खिलाफ आम जनता मार्क्स के नेतृत्व में क्रांति न कर बैठे अर्थात शोषक वर्ग की इस व्यवस्था को पलट न दे।
पूंजीपति वर्ग के लोग अपनी व्यवस्था को बचाए रखने के लिए दिन-रात जनता से झूठ बोल कर जनता को जनता से लड़ाते हैं. गंदी फिल्में दिखाते हैं, नशाखोरी जुआखोरी को बढ़ावा देते हैं, अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं, धर्म की आड़ लेकर जनता के खिलाफ सारे कुकर्म करते हैं। रोटी के सवालों से जनता का ध्यान हटाने के लिए मंदिर मस्जिद के नाम पर दंगा फसाद, मॉब लिंचिंग, आगजनी, लूटपाट बलात्कार आदि को बढ़ावा देकर यही लोग धर्म को अफीम का गोला बना देते हैं। कार्ल मार्क्स तो धर्म के नाम पर किए जा रहे इनके कुकर्मों को सिर्फ एक नाम दे देते हैं- अफीम का गोला