वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल
पार्टी पर नागालैंड में हमला
पार्टी पर नागालैंड में हमला पूर्वोत्तर में आम जनता पार्टी से तेजी से जुड़ रही थी। क्योंकि वहां गरीबी और जागरूकता- दोनो अधिक थी। केंद्र के सत्ताधारी दल भाजपा की आंखों में यह पार्टी गड़ने लगी थी। इस पार्टी ने सबसे पहले पार्टी के संस्थापक श्री विश्वात्मा की अहम में पुलिस सुरक्षा घटाया, जिससे उन पर हमला आसान हो सके। इसके बाद 13 मार्च 2020 को नागालैंड के दीमापुर जिले में पुलिस अधिकारियों को निर्देश देकर उस समय गिरफ्तार करा लिया, जब वह पार्टी कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दे रहे थे।
नागालैंड में पार्टी पर हमले का घटनाक्रम
दीमापुर में स्वतः संज्ञान (Sue Moto) लेकर मुकदमा दर्ज करके याचिकाकर्ता श्री विश्वात्मा को गिरफ्तार करने, मोटी रिश्वत लेने, फिरौती, टेरर फंडिंग और हत्या की साजिश संबंधी कुछ अतिरिक्त तथ्य और निष्कर्ष -
पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेकर विश्वात्मा श्री विश्वात्मा के विरुद्ध मामला दर्ज किया. उन पर आरोप लगाया गया कि वे अपनी पार्टी के माध्यम से लोगों को लालच देकर उनसे पैसा वसूल रहे हैं. 13 मार्च को 4 दिन की ट्रेनिंग के आखिरी दिन श्री विश्वात्मा को दीमापुर पुलिस स्टेशन यह कहकर बुलाया गया कि पुलिस को पार्टी द्वारा चलाये जा रहे अभियान के बारे में कुछ जानकारी लेनी है. लेकिन वहां पर श्री विश्वात्मा को उनके स्वयंसेवक अंगरक्षकों के साथ गैर कानूनी तरीके से गिरफ्तार कर लिया गया.
1. गिरफ़्तारी के लिए नागालैंड पुलिस की तैयार - 2 मार्च 2021 को याचिकाकर्ता के दिल्ली कार्यालय से याचिकाकर्ता के लिए पुलिस सुरक्षा का बंदोबस्त करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को और नागालैंड के पुलिस महानिदेशक को ईमेल भेजा गया था. इसी ईमेल से याचिकाकर्ता के नागालैंड टूर प्रोग्राम की जानकारी पुलिस विभाग को हो गई। इस जानकारी का दुरुपयोग करते हुए सुरक्षा देने की बजाय प्रदेश के उच्च स्तरीय अधिकारियों द्वारा याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करके धन उगाही और हत्या की साजिश की गई। घटनाक्रम यह बताते हैं कि इसी साजिश के तहत दीमापुर जिले की पुलिस को और मोन जिले की पुलिस को याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत करने के लिए शिकायतकर्ता तलाशने की जिम्मेदारी सौंपी गई होगी। इन्हीं दोनों जिलों में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के लिए शिकायतकर्ता तलाशना संभव था। क्योंकि इन्हीं दोनों जिलों में पार्टी का सदस्यता अभियान चल रहा था।
2. पुलिस द्वारा श्री विश्वात्मा के अरबपति होने की अफवाह उड़ाई गयी - उक्त निर्देश के अनुपालन में मोन जिले के डिप्टी कमिश्नर को किसी व्यक्ति ने वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल के सदस्यता संबंधी कुछ कागजात सौंपा। मार्च 11 को मोन के डीसी ने व्हाट्सएप पर प्रदेश भर के सरकारी अधिकारियों को एक संदेश प्रसारित/ वायरल करके याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी का माहौल पैदा किया। "पुलिस अधिकारियों के बीच और नागा उग्रवादियों के बीच यह अफवाह उड़ाई गई कि याचिकाकर्ता एक अरबपति व्यक्ति है। वह एक पार्टी का प्रमुख है। इस पार्टी के पास बहुत सारा धन है। यह धन नागालैंड के लोगों से इकट्ठा किया गया है। "। इस आफवाह की बात सबसे पहले याचिकाकर्ता को दीमापुर के तत्कालीन डीसीपी नईम मुस्तफा ने 14 मार्च को बताया। जब याचिकाकर्ता को जेल भेज दिया गया तो यही बात 24 मई को दीमापुर सेंट्रल जेल में गिरफ्तार होकर आए एक ऐसे कैदी ने भी बताया. इस कैदी के पास याचिकाकर्ता के सहयोगियों के अपहरण संबंधी पूरी जानकारी थी.
3.श्री विश्वात्मा के अपहरण के लिए कई उग्रवादी संगठन हुए सक्रिय - इस अफवाह से नागालैंड के उग्रवादी संगठनों को इस बात की प्रेरणा मिली कि याचिकाकर्ता का अपहरण करके पार्टी का सारा पैसा फिरौती और टेरर फंडिंग में ले लिया जाए। जेल में पहुंचे कैदी ने यह भी बताया कि उसकी टीम ने याचिकाकर्ता के अपहरण की 10 से १३ मार्च तक लगातार चार दिन कोशिश किया. चुकी याचिकाकर्ताा सुरक्षा गार्डों सेेे घिरा था, इसलिए उसका अपहरण करने का मौका नहीं मिला।
4. रिश्वत और धन उगाही साजिश के तहत पार्टी पर ठगी का आरोप लगाया गया - व्हाट्सएप के माध्यम से मोन जिलें के डिप्टी कमिश्नर द्वारा प्रसारित उक्त संदेश याचिकाकर्ता तक 11 मार्च की सुबह पहुंचा। जिसमें पार्टी के सदस्यता आवेदन पत्र और रसीद पत्र की फोटो भेजते हुए यह कहा गया था कि पार्टी से सदस्यता आवेदन पत्र में पार्टी सदस्यता शुल्क की रकम ₹150 लिखी है और धन प्राप्ति की जो रसीद दी जा रही है उसमें लिखा है- ₹350 प्राप्त किया। इस मुद्दे पर 11 मार्च को पार्टी के दो कार्यकर्ताओं को मोन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उन पर आरोप लगाया कि आप लोग जनता से ठगी कर रहे हो- ₹350 ले रहे हो और ₹6000 देने का वादा कर रहे हो।
5. पार्टी ने अपनी वेबसाइट पर दिया स्पष्टीकरण - जब यह जानकारी पार्टी को नागालैंड के पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के माध्यम से याचिकाकर्ता की पार्टी के कार्यालय को प्राप्त हुई तो इसका स्पष्टीकरण पार्टी की वेबसाइट पर 12 मार्च को अपलोड किया गया। यह बताया गया कि सन 2019-20 के सदस्यता कागजातों में गलती से सन् 2020-21 की रसीदें संलग्न हो गई हैं। पार्टी का सदस्यता शुल्क कई सालों से बढ़ा नहीं था। पार्टी कार्यकर्ताओं की मांग पर इसे ₹150 से बढ़ाकर ₹350 किया जाना था। इसके लिए रसीदें छप चुकी थी। जो गलती से सन 2019 के कागजातों में चली गई थीं। यह मात्र लिपिकीय भूल है।
6. अवैध रिश्वत व धन उगाही के लिए विश्वात्मा की गिरफ़्तारी व केस दर्ज पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के लिए विश्वात्मा भरत गांधी मोन जिले में मौजूद नहीं थे, अपितु दीमापुर जिले में ट्रेनिंग दे रहे थे। मोन जिले के डीसी और एसपी ने किसी उच्च अधिकारी के निर्देश पर यह जानकारी दीमापुर जिले के पुलिस कमिश्नर को दिया होगा। मोन जिले के डीसी के व्हाट्सएप संदेश का हवाला देते हुए यह कहा होगा कि पार्टी के सदस्यता संबंधी कागजात में कथित गड़बड़ी पाई गई है। पार्टी कार्यकर्ता यदि निर्धारित शुल्क से अधिक रकम किसी से प्राप्त किए तो गलती उन्हीं कार्यकर्ताओं की थी और मुकदमा उन्हीं पर दर्ज किया जाना चाहिए था। किंतु इससे फिरौती का उद्देश्य पूरा नहीं होता। मोटी रिश्वत, फिरौती, टेरर फंडिंग और हत्या का उद्देश्य पूरा करने के लिए याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी या अपहरण जरूरी था. मोटी रिश्वत, धन उगाही, गिरफ्तारी और हत्या की शाजिश के पीछे जो प्रमुख उच्च स्तरीय और प्रभावशाली साजिशकर्ता था, उसने यह बताया होगा कि पार्टी के प्रमुख नेता को गिरफ्तार करने से ही यह सब संभव होगा। पार्टी के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से यह सब संभव नहीं है.
7. अन्य कार्यकर्ताओं को छोड़ा गया पूर्दी दीमापुर थाने में मुकदमा याचिकाकर्ता के साथ ही साथ उसके तीन अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं के ऊपर भी दर्ज किया गया. किंतु बाद में मुकदमे से इन तीनों का नाम निकाल दिया गया. उनको थाने में यातनाएं देकर सरकारी गवाह बनाकर थाने से 15 मार्च की रात को छोड़ दिया गया। क्योंकि मोटी रिश्वत, फिरौती और टेरर फंडिंग की रकम लेने के लिए इन लोगों की गिरफ्तारी उसी तरह अनावश्यक थी, जिस तरह मोन जिले में 11 मार्च को गिरफ्तार किए गए पार्टी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी अनावश्यक थी।
8.श्री विश्वात्मा के विरूद्ध शिकायतकर्ता न मिलने पर पुलिस ने की साजिश - दीमापुर पुलिस को यह निर्देश कहीं से अवश्य मिला कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के लिए कोई शिकायतकर्ता तलाशा जाए। किंतु गिरफ्तारी के लिए कोई शिकायतकर्ता शिकायत करने के लिए तैयार नहीं हुआ होगा। क्योंकि याचिकाकर्ता सामाजिक कार्यों के लिए स्वयं को अपनी 23 साल की उम्र से ही समर्पित कर चुका है। अन्याय का विरोध करने के लिए संकल्पित है। याचिकाकर्ता ऐसा व्यक्ति है जिसने आमदनी का जरिया जानबूझकर नहीं किया। जिसने शादी विवाह नहीं किया। जिसने निजी संपत्ति नहीं बनाया। यहां तक कि जिसका एक भी बैंक खाता भी नहीं है। वह ₹1 का भी स्वामी नहीं है। दीमापुर पुलिस द्वारा बनाई गयी चार्जशीट इसका सुबूत है. क्योंकि याचिकाकर्ता के ऊपर ठगी का आरोप लगाकर गिरफ्तार किया गया था। ऐसे संत व्यक्ति के खिलाफ शिकायत करने के लिए तैयार कौन होता?
9. धन उगाही के लिए 10 दिनों तक अवैध पुलिस रिमांड - जब कोई शिकायतकर्ता नहीं मिला तो, मोन जिलें का एफ आई आर फर्जी हस्ताक्षरों से पुलिस द्दवारा दर्ज करवाया गया। किसी उच्च स्तरीय प्रभावशाली अधिकारी के निर्देश पर याचिकाकर्ता को बातचीत करने के लिए धोखा देकर डीसीपी नईम मुस्तफा द्वारा थाने में बुलाया गया और वहां 10 दिनों तक थाने में अवैध तरीके से रोक कर रखा गया। उल्लेखनीय यह है कि विश्वात्मा की गिरफ्तारी ट्रेनिंग के अंतिम दिन इसलिए की गयी, क्योंकि उसी रात उसको राजधानी ट्रेन पकड़कर कोकराझार में ट्रेनिंग देने के लिए जाना था। धोखा देकर थाने में बुलाने के बाद 1 सप्ताह तक अदालत में पेश नहीं दिया गया। कागजों में फर्जी तरीके से 7 और 3 यानी कुल मिलाकर 10 दिनों का पुलिस रिमांड दिखाया गया। इस बीच याचिकाकर्ता से सौदेबाजी की गई। यहां तक कि दीमापुर का पुलिस कमिश्नर इसी उद्देश्य से याचिकाकर्ता से मिलने के लिए थाने पर स्वयं आया। रिश्वत / फिरौती देने के लिए जब याचिकाकर्ता राजी नहीं हुआ तो पुलिस कमिश्नर के आदेश पर डीसीपी मुस्तफा ने, थाना प्रभारी कंचन खंडेलवाल ने और जांच अधिकारी अमित कुमार (तीनो आई पी एस) ने याचिकाकर्ता को थाने में यातनाएं देकर फिरौती प्राप्त करने की कोशिश किया। लेकिन याचिकाकर्ता फिरौती देने के लिए तैयार नहीं हुआ, तब उसे 23 मार्च को उस दिन जेल भेज दिया गया. उसके अगले ही दिन देशभर में लॉक डाउन लगाया गया। लंबे समय तक रिमांड पर इसलिए भी रखा गया जिससे कि लॉकडाउन के कारण उसकी पैरवी करने के लिए कोई अदालत तक न पहुंचने पाये। परिणाम स्वरूप जेल में लंबा समय तक रोकना संभव हो सके। ऐसा लगता हैै कि गिरफ्तारी की साजिश रचने वाले व्यक्ति कितना प्रभावशाली था कि उसको भविष्य में किये जाने वाले लॉक डाउन के फैसले की भी जानकारी थी।
10. श्री विश्वात्मा के विरुद्ध साजिश और गहराई - याचिकाकर्ता के खिलाफ एक झूठा एफ आई आर मोन पुलिस ने कथित रूप से 21 मार्च को फर्जी हस्ताक्षरों से मात्र इसलिए दर्ज किया. इसके पीछी उद्येश्य यह था की यदि दीमापुर जेल से याचिकाकर्ता की रिहाई बिना धन उगाही के संभव होती है और उसका जीवित नागालैंड से बाहर निकलना किन्ही कारणों से संभव होता है तो उसको ट्रांजिट रिमांड लेकर मोन जिले की जेल में बुला कर बंधक बना लिया जाएगा. यहाँ धन उगाही और हत्या को संभव बनाया जाएगा। इसीलिए मोन जिलें में याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित रूप से 21 मार्च को मुकदमा दर्ज करके याचिकाकर्ता को दीमापुर जेल में 19 जून तक सूचना नहीं दी गई। याचिकाकर्ता को जून में सूचना तब दी गई जब उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को जमानत दे दी और दीमापुर अदालत में जमानत लेने के लिए वकील और जमानतदार 19 जून को पेश होने वाले थे। मोन जिले की पुलिस को यह कैसे पता चल गया की याचिकाकर्ता कि कल 20 जून को रिहाई होने वाली है? ऐसा तभी संभव है जब मोन जिले की पुलिस और दीमापुर जेल की पुलिस के बीच में कोई एक व्यक्ति घटनाओं पर नजर रखे हुए था और निगरानी कर रहा था। वह व्यक्ति या अधिकारी इतना ताकतवर था कि जिसका आदेश दीमापुर के पुलिस कमिश्नर और मोन जिले के डिप्टी कमिश्नर और पुलिस अधीक्षक मानने के लिए विवश थे। यही व्यक्ति यह बात भी सुनिश्चित कर रहा था कि दीमापुर जिले के वकील याचिकाकर्ता के पैरोंकारों से फीस के नाम पर मोटी रकम तो ले लें, लेकिन अदालत में अपना कर्तव्य निर्वाह न करें। यही व्यक्ति इस बात की देखरेख कर रहा था कि दिल्ली से आए हुए याचिकाकर्ता के वकील अपना कार्य न करने पायें।
11. कहीं और जुड़े थे श्री विश्वात्मा के विरुद्ध साजिश के तार -रिमांड के दौरान जांच अधिकारी अमित कुमार ने और डीसीपी नईम मुस्तफा ने नागा उग्रवादियों द्वारा मोब लिंचिंग करवा कर हत्या कर देने की धमकी दिया था. किंतु याचिकाकर्ता ने इसको गंभीरता से नहीं लिया था। क्योंकि इस धमकी को याचिकाकर्ता ने धन उगाही के प्रयासों का एक हिस्सा माना। किंतु जब कोहिमा उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को जमानत मंजूर कर दिया तो उसी दिन न्यायालय के आदेश होने के तत्काल बाद जांच अधिकारी अमित कुमार याचिकाकर्ता से मिलने के लिए जेल पंहुचा। उसने उस समय भी पैसे की मांग किया। उसने कहा कि मैं कुछ अंतिम बात पूछताछ करने के लिए आया हूं। उसने जानना चाहा कि क्या आपने दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भाषण दिया था? याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया। उसने दूसरा प्रश्न करते हुए पूछा- क्या आपने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ असम में पार्टी की रैली किया था? याचिकाकर्ता ने यह बात भी स्वीकार किया। उसने तीसरा प्रश्न किया कि अगर आप की मृत्यु हो गई तो आप के बाद पार्टी को संभालने वाला दूसरे नंबर का व्यक्ति कौन है? तब याचिकाकर्ता ने उत्तर दिया था कि इस प्रश्न पर कभी सोचा ही नहीं। वह जेल से बाहर जाते जाते यह कह गया था कि नागालैंड से आप जीवित बाहर नहीं जा सकते। नागा लोग भड़क गए तो जेल के अंदर से आपको खींच कर ले जाएंगे और मार देंगे। उसने कहा कि आप मरेंगे तभी नागालैंड के उग्रवादियों और पूरे देश भर से ईसाइ मिशनरियों का खात्मा करने के लिए केंद्र सरकार को नागालैंड में सैनिक ऑपरेशन चलाने का मौका मिलेगा। उसने मुस्कुराते हुए यह भी कहा था कि "गांधीजी आप तो समाज के लिए सब कुछ त्याग चुके हो। संविधान का अनुच्छेद 371 खत्म करके नागालैंड को भारत में पूरी तरह शामिल कर लेने के लिए अपना बलिदान क्यों नहीं दे देते? यह कह कर वह चला गया था
12. जब विश्वात्मा को ट्रांजिट रिमांड पर दीमापुर जेल से मोन जिले के सीजीएम अदालत के सामने पेश करने के लिए ले जाया गया, तब उनको को धोखा दिया गया। यह कहा गया की मात्र 48 घंटे के लिए ले जा रहे हैं। फिर वापस छोड़ देंने का आदेश है। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। याचिकाकर्ता को मोन जिले की जेल में बिना कपड़ों के डेढ़ महीने कटाने के लिए विवश किया गया.
13. मोन जिले के अस्पताल में जब 21 जून को सुबह कोरोना वायरस जांच के लिए विश्वात्मा को ले जाया गया तो वहां एक व्यक्ति आया और अपने को भारतीय जनता पार्टी का जिलाधक्ष बताते हुए याचिकाकर्ता को अपना परिचय दिया। जब याचिकाकर्ता ने पूछा कि आप मुझे कैसे जानते हैं? तब वह विजय की मुद्रा में उसने बताया कि उसे सब कुछ मालूम है। उसने यह भी बताया कि वह जिले के एसपी और डीसी के संपर्क में है। मांगे जाने पर उसने अपना फोन नंबर भी याचिकाकर्ता को दिया।
14. जिला अस्पताल पर विश्वात्मा से मिलने के लिए मोन जिले का थानाध्यक्ष भी पहुंचा। उसने बताया कि मुकदमा मैंने दर्ज किया है। क्योंकि मुझे ऊपर से निर्देश मिला था।
15. कांग्रेस के पूर्व विधायक का संदेहजनक व्यव्हार - जब मोन जिले की जेल में विश्वात्मा को डाल दिया गया। अगले ही दिन एक व्यक्ति अपने कथित सेक्रेटरी के साथ जेल के अंदर विश्वात्मा से मिलने आया। उसने अपना नाम पूर्व विधायक जान कोन्यक बताया। उसने विश्वात्मा से मोटी रकम की मांग किया और कहा कि अगर यह पैसा आप दे दीजिए तो हम मोन जिले का मुकदमा खत्म करवा देंगे। जिसने शिकायत किया है उससे शिकायत वापस लेने के लिए बोल देंगे। शिकायत वापस हो जाएगी। उसने अपने फोन से पार्टी के असम प्रदेश के अध्यक्ष से पैसा प्राप्त करने के लिए टेलीफोन पर याचिकाकर्ता की बात भी करवाया। उसने यह भी कहा कि अगर आप पैसा नहीं देंगे तो जेल से निकल नहीं पाएंगे, न तो नागालैंड से जिंदा बाहर जा पाएंगे। उसने यह भी कहा कि मैं दीमापुर में रहता हूं और शिवाकांत तथा नवीन को अपहरण से मैंने ही मुक्त कराया है। लेकिन अगर मुझे शिवाकांत मिल गए तो मैं उसको जिंदा नहीं छोडूंगा। क्योंकि वह आदमी अपहरण से मुक्त होने के बाद मुझे धोखा देकर दीमापुर से दिल्ली भाग गया। उसने यह भी कहा कि जब आप दिमापुर जेल में थे तो मैंने जेल के सुपरिंटेंडेंट को आप से टेलीफोन पर बात कराने के लिए कहा था। लेकिन सुपरिंटेंडेंट ने बताया कि आप बात करने के लिए तैयार नहीं हो। इससे पता चलता है कि इस तथाकथित विधायक को अपहरणकर्ताओं के बारे में पूरी जानकारी थी।
16. पुलिस की चार्जशीट पार्टी द्वारा ठगी साबित नहीं कर पाई - चार्जशीट में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि विश्वात्मा कथित रूप से ठगी करके जो धन प्राप्त किया, वह कहां ले गए? सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 2001 इसमें दिए गए फैसले के अनुसार ठगी के मामले को साबित करने के लिए लिये गये पैसे का रूट दिखाना सबसे जरुरी साक्ष्य हैं।1
17. अपहरण माफिया की जेल तक थी पहुँच - फिरौती वसूलने के उद्देश्य से एक महिला विश्वात्मा से दीमापुर जेल के अंदर मिलने के लिए एक वकील ईस्टर के साथ आई. इस महिला ने अपना नाम एडवोकेट जेमिमा बताया. यह भी बताया कि उसका पति नागालैंड के कुख्यात उग्रवादी संगठन - एनएससीएन यूनिफिकेशन का वित्तीय प्रमुख हैं। यानी धन उगाही के कार्यों का प्रभारी है। उसने जेल में याचिकाकर्ता से मोटी रकम की मांग किया. उसने कहा कि यदि जेल से जीवित जाना है तो पैसा देना ही पड़ेगा. उसके प्रस्ताव को याचिकाकर्ता ने अस्वीकार कर दिया. क्योंकि यह टेरर फंडिंग के अपराध में हाथ बंटाने जैसा काम था. याचिकाकर्ता के पास पैसा देने के लिए था भी नहीं।
याचिकाकर्ता विश्वात्मा भरत गांधी की गिरफ्तारी के दौरान जेल के अधिकारियों द्वारा किए गए अनैतिक और गैर कानूनी कार्य संबंधित तथ्य इस प्रकार है-
1. 20 मई को जब याचिकाकर्ता के पैरोकार श्री शिवाकांत गोरखपुर और श्री नवीन कुमार के फोन स्विच ऑफ हो गए, तब याचिकाकर्ता को कुछ अनहोनी का अंदेशा हुआ। इस अंदेशे के आधार पर याचिकाकर्ता ने जेल प्रशासन को एक आवेदन देकर सीजेएम कोर्ट तक पहुंचाने का निवेदन किया। किंतु जेल प्रशासन ने आवेदन कोर्ट तक न पहुंचा कर अपहरणकर्ताओं का सहयोग किया। बाद में याचिकाकर्ता को पता चला कि उसकी आशंका सही थी और उनके पैरोकारों का नागालैंड के आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था।
2. जब याचिकाकर्ता के पैरोकार श्री शिवाकांत गोरखपुर और श्री नवीन कुमार के अपहरण के बाद एक कैदी ने धन उगाही की डील करने के लिए जेल के अंदर कोशिश किया, तो जेल के अधिकारियों ने उसका सहयोग किया और याचिकाकरता के विरोधी हो गए.
3. अपहरणकर्ताओं में से एक व्यक्ति- कांग्रेस के पूर्व विधायक जोंन कोंयक ने जब जेल के ए आई जी इम्तियांग्शी आओ को फोन करके याचिकाकर्ता से बात कराने के लिए कहा तो ए आई जी "आओ" ने याचिकाकर्ता की इच्छा न होते हुए भी जबरदस्ती बात करने का आदेश दिया। इस प्रकार टेरर फंडिंग के लिए आतंकवादियों की मदद किया। जबकि कानून ऐसा करने की इजाजत जेल के अधिकारियोंं को नहीं देेेता।
4. जब याचिकाकर्ता के सहयोगी अपहरण के शिकार थे, उस समय जेल के अधिकारियों को अपहरणकर्ताओं के बारे में जानकारी थी। जेल के ek अधिकारी ने जेल के अंदर याचिकाकर्ता को सूचना दिया कि अपहरणकर्ता 153 करोड़ रुपए की फिरौती की मांग कर रहे है। किंतु अधिकारियों ने अपहरणकर्ताओं के बारे में जानकारी पुलिस को नहीं दिया।
5. ट्रांजिट रिमांड लेकर जब मोन पुलिस इंस्पेक्टर दीमापुर जेल पर पहुंचा तो जेल का डॉक्टर अनुपस्थित था और कंपाउंडर ने झूठी रिपोर्ट देते हुए जाए लिख दिया "याचिकाकर्ता यात्रा करने के लिए स्वस्थ है"। जबकि कंपाउंडर को स्वास्थ रिपोर्ट देने का अधिकार नहीं है।
6. याचिकाकर्ता के सहयोगियों के अपहरण करने वाले प्रमुख अपहरणकर्ता की पत्नी को जेल के अधिकारियों ने फिरौती के संबंध में बातचीत करने के लिए दीमापुर जेल के अंदर प्रवेश दिया और याचिकाकर्ता से उनकी मुलाकात करवाई। जबकि लाक डाउन के दौरान जेल के अंदर किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित था।
7. अपहरणकर्ताओं को जब याचिकाकर्ता फिरौती में कोई रकम देने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब जेल के एक अधिकारी ने याचिकाकर्ता से जेल के अंदर धमकाते हुए 10 लाख रुपए की मांग किया।
8. मोन में जेल में सहायक जेलर सहायक जेलर Y. Chbasangle Chang ने याचिकाकर्ता का पैसा जेल में प्रवेश करते वक्त जमा करवा लिया किंतु रसीद नहीं दिया। बाद में जेल से वापस जाते वक्त याचिकाकर्ता की पूरी धनराशि को वापस नहीं किया। यह कह दिया कि उसकी धनराशि को उसके वार्ड के मेट ने खर्च कर दिया। सहायक जेलर Y. Chbasangle Chang ने भोजन के नाम पर गाय का मांस दिया गया। भोजन में सब्जी नहीं दिया गया। सहायक जेलर ने सप्ताह में कानून के अनुसार 2 दिन टेलीफोन करने का अवसर नहीं दिया गया। पीने के लिए साफ पानी नहीं दिया गया। खुली टंकी का पानी पीने के लिए विवश किया गया.
9. न्यायाधीश ने बिना कपड़ों के जेल में रहने के लिए विवश किया। दीमापुर जेल वापस भेजने के निवेदन को बार बार ठुकराया, जहाँ याचिकाकर्ता के कपडे छूट गए थे.
उक्त तथ्यों से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलता है कि -
1. विश्वात्मा उर्फ़ भरत गांधी की गिरफ्तारी एक पूर्व नियोजित साजिश के तहत की गई जिसमें इतने प्रभावशाली लोग शामिल थे जिनकी बात मानना नागालैंड के सभी जनपदों के पुलिस कमिश्नर, डिप्टी कमिश्नर जैसे अधिकारियों के लिए मानना अनिवार्य था।2. विश्वात्मा को जेल भेजने का निर्देश था। यदि कोई शिकायतकर्ता मिले तब भी और अगर न मिले तब पुलिस द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर शू मोटो मुकदमा दर्ज करने का निर्देश था।
3. जेल भेजने के बाद विश्वात्मा जेल से बाहर न निकल सकें- इसके लिए आपराधिक तरीके अपनाने का निर्देश भी प्रभावशाली साजिशकर्ता की तरफ से नागालैंड के उच्च अधिकारियों को दिया गया था।
4. जब तक श्री विश्वात्मा की पार्टी का समस्त कोष पुलिस को रिश्वत के माध्यम से या आतंकवादियों को फिरौती के माध्यम से देने के लिए तैयार न हों, तब तक उनको लगातार एक जेल से दूसरे जेल में नए-नए झूठे मुकदमों में बंधक बनाकर रखने का निर्देश था।
5. विश्वात्मा द्वारा संचालित राजनीतिक दल खत्म करने के लिए यह भी निर्देश था कि यदि पुलिस विश्वात्मा की पार्टी का कोष रिश्वत के माध्यम से हासिल न कर सके, तो पुलिस टेरर फंडिंग की योजना बनाकर जेल से बाहर निकलते ही नागालैंड के उग्रवादियों द्वारा विश्वात्मा का अपहरण सुनिश्चित करें। साथ में यह भी पुलिस सुनिश्चित करें कि विश्वात्मा की मृत्यु के बाद उनकी पार्टी को चलाने की क्षमता रखने वाले उनके पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले व्यक्ति की हत्या भी किया जाए, जिससे पार्टी को कोई दूसरा व्यक्ति पुनर्जीवित न कर सके। यह सब साजिश केवल इसलिए किया गया जिससे विश्वात्मा की पार्टी समाप्त हो सके, पार्टी के कोष को खत्म किया जा सके, विश्वात्मा भरत गांधी को समाप्त किया जा सके और विश्वात्मा की हत्या की घटना को मीडिया में तूल देकर नागालैंड के उग्रवादियों और पूरे देश के ईसाई मिशनरियों के खिलाफ सैन्य ऑपरेशन चलाने का निर्देश दिया जा सके।